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चवलचमवियलणपसरियकर परिमललुलियललियमहुलिहसरु । मरुवहविगयखयरसुवरघर अमरिसकसणपिसुणजयसिरिहरु। सहपरिभमियजिमियसुरमियसहु पहुसुहजणणकहियमणहरकहु। पहरविहुरु सुमरिवि मयभययरु णिवबलु गिलइ व गुहमुहगिरिवरु । पत्ता तेण जि रिउमहो मग्गियपहहो घरु आयड फणिवहुलालिउ॥
भरहहु भयवसेण सगुहामिसेण णियहियवउं हक्खालिउ॥ ४॥
दुवई-कज्जल(णीलबहलतमपडलविणासियणयणमग्गए।)
घत्ता-इसी कारण मानो रास्ता भोगनेवले शत्रुओं में महान् और घर आये हुए भरत के लिए डरकर अपनी गुहा के बहाने बहुत से नागों से सुन्दर उसने अपना हृदय दिखा दिया॥४॥
चंचल चामरों को हिलाने के लिए हाथ उठे हुए हैं, परिमल पर झूमते हुए सुन्दर भ्रमरों का स्वर हो रहा है, आकाशमार्ग से जिसमें देवों और विद्याधरों के घर (विमान) छोड़ दिये गये हैं, जो अमर्ष, कठोर और दुष्टों की विजयश्री का अपहरण करनेवाली है, जिसमें सुरसभा साथ रहती, घूमती और खाती है, जिसमें स्वामी के लिए शुभ करनेवाली कथाएँ कही जा रही हैं, प्रहार से जो विधुर है. ऐसा मद और भय उत्पन्न करनेवाला राजा का सैन्य स्मरण कर गुहा के मुख-विवर को जैसे निगल रहा है।
काजल
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