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गील वडल तमण्डलविरमा सियणयणमग्र वश्वाहिणी दसुमही हरकहर श्यचिंतिवि कर ढोरविकाणि चमुपमुहालिदियमसिदिणर्माण तेसोइतिविवरघर लितिहि पावश्नयण इणखर कवि कर पेयरेणता दतमुसारि शिसिदिवस सोहतणिराखिं वद इसे जब इंडविज पलय कालिणे जल गिरिगजर उनमंतपडिर बंगलोरहिं दुरयघडा घटा
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और नील के समान प्रचुर तमपटल से जिसमें नेत्रों का मार्ग नष्ट हो गया है, महीधर के ऐसे गुहादुर्ग में सेना मुख से नहीं जा पा रही थी- यह सोचकर कागणी मणि लेकर सेनाप्रमुख ने सूर्य चन्द्र अंकित कर दिये। वे विवर की दीवालों पर इस प्रकार शोभित हुए मानो जैसे राजा की कीर्ति की आँखें हों। किरणसमूह से उन्होंने अन्धकार-समूह हटा दिया और रात्रि में दिन अत्यन्त रूप से सोहने लगा। सेना चलती है। जय का
टंकारहिं संदण सक्कचक्कविकारहि धाविरधीरखा रहकारदि महिहरविवरमग्नु रा
गुफामादिदर थकउसे लउ इशा
नगाड़ा बजता है, मानो प्रलयकाल में समुद्र गरज रहा है। उठते हुए प्रतिशब्दों से गम्भीर गजघटा के घण्टों की टंकारों, रथों से छोड़ी गयी चीत्कारों, दौड़ते हुए हुंकारों के द्वारा मानो महीधर का विवरमार्ग फूट पड़ता है और कोलाहल से
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