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सश्वरिसधा पायलुसामलविलससरधषुमहिणीहरिहटिवश्त्या पवसियपियापिटा लिप्यन्तापक्वलकारंतवदासवाण तिमाईसम्मश्मोजरजण तडितडयदृश्यडामहारा तरुकडयफडशवडगिरिजलपरियलचलधाभश्हारअश्यसरइसरस्यूरसारजल थलसदलजसजादागामायमरविकिषिपणाटक सरकसमसहाणराहिसघशावदमाथ यर्विधान पापिलंगायग विज्ञविडेवाणिखएकदिल्लसरिदहापाउसह्यमणहो समुजाहा जीवरिसड्जवरिपरिदहोविज्ञासलिललल्लरलयडिपेलणहरड़मविषय रिलमा पवधणरावमुश्यचंदककलामहसियपिंचनालादासश्लग्नठवासानन सणामहिल हणावशवम असिजलेणिवडेविमलपुणधावसडनदहोसम्मुशावतातिणमिल रंगमञ्जमगाइलाईगिलियहोकाकिरलगाववकिपिलिपिछहिंदलियाकमहलिहि यठपन्नावलियम कामंडपुविसदलिघरिणाहाटालशशिरसिंहाईकरिणिहिवसर्वसनम
वहारिस एवहिपरचिंधदेयारिटमकसम्पाणहारिणावसरून्यगईनवपलणाईजलहाधार यमयमायगहंदाणडाहहरु तिपदाण यक्वसबकवायरहणसरतापतरतिणकका १३१
घन-कुल गरजता है और बरसता है, पीला और श्यामल इन्द्रधनुष शोभित है। मही निखर उठी है, हरी घास से अपने चन्द्रकलाप फैलाकर मयूर नाच रहे हैं, ऐसी वर्षा ऋतु आ गयी दिखाई देती है, जैसे वह सेनारूपी बढ़ रही है, प्रोषित-पतिकाओं का मन पिय के लिए सन्तप्त हो रहा है, बान खिले हुए कदम्ब वृक्षों से आरक्त महिला पर आसक्त हो। तलवार के जल (की धार) पर गिरकर पानी फिर दौड़ता है, और योद्धाओं के दिखाई देते हैं, गीला-गीला होकर जन-मन में खेद को प्राप्त होता है, बिजली तड़-तड़ पड़ती है, सिंह गरजता भुजदण्डों के सम्मुख आता है, वह वहाँ भी नहीं ठहरता और वहाँ से जाना चाहता है, लोभ से ग्रस्त कौन है, वृक्ष कड़-कड़ करके टूटते हैं, पहाड़ विघटित होता है। जल बहता है, फैलता है, घाटी में घूमता है। वेग किससे लगता है, वह भ्रमरों के पंखों से दलित होकर वधुओं के मुखों पर लिखित पत्रावली को कुछ-कुछ से दौड़ता है, नदी पूर से भरती है, जल और थल सब कुछ जलमय हो गया। मार्ग-अमार्ग कुछ भी नहीं मालूम धोता है। शत्रु की गृहिणी के मण्डन को कौन सहन करता है, वह हथिनियों के सिरों का सिन्दूर ढोर देता पड़ता। कामदेव अपने तीर का अच्छी तरह सन्धान करता है और विरह से पीड़ित पथिक को विद्ध करता है। है।"हे ध्वजदण्ड, तुम्हें मैंने बड़ा किया है इस समय दूसरों के ध्वजचिह्नों से शोभित हो, मेरा सर (स्वर)
घत्ता-पानी निम्नगति है, बिजली भी जलाती है, देवेन्द्र का धनुष निर्गुण और कुटिल है। पावस हतमन अब प्राणहारी (प्राण धारण करनेवाला/प्राण हरण करनेवाला) सर (सर/तीर) के समान है।" मानो मेघ दुर्जन के समान है कि जो राजा के ऊपर बरस रहा है॥९॥
गरजते हुए इस प्रकार कह रहा है। वह मैगल गजों के मदजल को धोता है, मानो दुष्ट मेघों के लिए दान १०
अच्छा नहीं लगता। चक्रवाक सहित रथ ठहर गये हैं मानो सरोवर हों, पानी में कौन-कौन मनुष्य नहीं तिरते। जिसमें जल की धाराओं की रेलपेल से वृक्ष आहत हैं और पशु चले गये हैं, जिसमें नवमेघों की ध्वनि
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