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णमहदीवियदिन अग्धकसमरसवासहाश्यचलवलंततेप्रतिपराश्याघना वोजितना णा विहेसरवणा किंपारभिगहणकनकालिययुखरहो माणससरहाणिजूरमिकिस
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यवनशानाडवीतामेलादिवशतणियाफणिणागजतगयवर णिहर्षविवरियामिणमात रुणाकरचलियचामरीला खंघावारहानप्परिवहणिसु ताणायहिवनदियाउसमयम्लुतमान
अर्घ्य पुष्यों की रसवास से दौड़कर आते हुए वे शीघ्र चिलबिलाते हुए वहाँ पहुँचे।
घत्ता-विषधरों के राजा सर्प ने कहा - "क्या ग्रह-नक्षत्रों को गिरा दूं? जिसमें सुरवर क्रीड़ा करते हैं ऐसे मानसरोवर के क्या कमल तोड़ लाऊँ?॥८॥
तब म्लेच्छराज ने नागों से कहा-"जिसमें गजवर गरज रहे हैं, और तरुणीजन द्वारा स्वर्ण चामर ढोरे जा रहे हैं, ऐसी इस शत्रुसेना को मार डालो।" तब नागों ने स्कन्धावार के ऊपर विद्या से दिन-रात वर्षा शुरू कर दी। पशुकुल त्रस्त होता है,
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