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लावन की लंत मी पालियान तुड़ा लग्नर्डिडी रपिंडरेग्गयाउ गिरिंदा तरणिग्नया? विसुन्लो लवला क्लीव कियानु पहा संतरेराणोथक्कियां महाणायामायन्त्रि सिंधूसरी जान अलग्नाडुग्नाणिकारणं सहिष्णा पिणास कमेण कारण सरी सारती रा
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पिया पुरोसिस वारय जाणिर्कण दरीमाणियपाणिदाधिकण परंपारमाधारमास छिर्का गिरिकुदरतरदो रमियामरह।। पिंग्नतनुसालकार सहमहार इहो वियलि लेकखंड नमस
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मुहदो कबुवसुकदेवताग्निंते सरह तेरीरख कंपिमभिळमंडल परवल दलम
जलों के आवतों में मीनावलियाँ क्रीड़ा कर रही हैं, जो तट में लगे हुए फेनसमूह से उग्र हैं, ऐसी समुन्मग्ना और निमग्ना नामवाली पर्वतराज के मध्य से निकलनेवाली, जल की लहरावलियों से वक्र दो नदियाँ राजा के रास्ते के बीच आकर इस प्रकार स्थित हो गयीं, मानो जैसे महानागराज की दो नागिनें हों जो मानो मत्स्यों से उत्कट सिन्धु नदी के लिए जा रही हों तब अभग्न दुर्गों से निस्तार दिलानेवाले, कुशल स्थपतिरत्न के द्वारा निर्मित सेतुबन्ध से नदियों के श्रेष्ठ तीरों को बाँधकर नगर में सेना का संचार जानकर, घाटियों के द्वारा
मान्य पानी को लाँघकर श्रेष्ठ उस पार के आधार को पार कर
घत्ता - जिसमें देव रमण करते हैं ऐसी पहाड़ की गुफा में से निकलता हुआ अलंकार सहित सैन्य इस प्रकार शोभित हो रहा था जैसे मुँह से निकलता हुआ महायोग्य सुकवि का काव्य हो ॥ ६ ॥
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भरत के निकलने पर नगाड़ों की ध्वनियों से म्लेच्छ मण्डल काँप उठा। शत्रुसेना के दलन के लिए
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