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अच्छिओ छमासं
वल्लरीललंतं
णिग्गयग्गिजालं
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मुक्कदीहसासं
दावियंघयारं
णट्ठताववेयं
लग्गसीयवायं
छह माह रहा। लताओं से शोभित उस वन का उसने आनन्द लिया। जिसकी अग्निज्वाला शान्त हो चुकी हैं, धूममाला मन्द पड़ चुकी है, जो दीर्घ साँसें छोड़ रहा है मानो पर्वत का मुख हो, जो अन्धकार को दिखा रहा है, ऐसे उस गुहाद्वार का तापवेग समाप्त हो गया, उसमें मार्ग का भेद बन गया, हबा ठण्डी लगने लगी
देवदारुवासं । माणियं वर्णतं ।
मंदधूममालं ।
णं महीहरासं ।
तं गुहादुवारं । सिट्ठमग्गभेयं ।
सीयलं च जायं।
घत्ता-चंदणचच्चियउ कुसुमंचियउ ता पेसिउ पालियखत्तें ॥ आरासयफुरियउ सुरपरियरिउ संचलियउ चक्कु पयत्तें ॥ ३ ॥
और वह शीतल हो गया।
घत्ता - तब चन्दन से चर्चित फूलों से अंचित सौ आराओं से चमकता हुआ देवों से घिरा हुआ चक्र उसने भेजा। वह भी प्रयत्नपूर्वक चला ॥ ३ ॥
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