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सेलसिंगवासो वंदिओ परिंदो हारमिंदुधाम कंकणं किरीडं पंडुरं पसत्थं कुंजरारिवूढं हितकंजलीलं सवलोयमोल्लं चामरेण जुत्तं हासहंसवण्णं मंगलं पहाणं रुक्खरोहियासे
सुद्धसेयवासो। तेण वीरचंदो। दिव्यपुप्फहामं। कुंभमभणीडं। चार हारि वत्थं। हेमरण्णवीढं। भम्मदंडणालं। कित्तिवेल्लिफुल्लं। णिम्मलायवत्तं। राइणो विइण्णं। तित्थतोयण्हाणं। तम्मि भूपएसे।
शैल के अग्रभाग का निवासी और शुद्ध श्वेत वस्त्रधारण करनेवाला। उसने वीर श्रेष्ठ नरेन्द्र की वन्दना की। निर्मल आतपत्र कि जो मानो कीर्तिरूपी लता का फूल था, जिसका मूल्य समस्त लोक था और जो हास और चन्द्रमा की तरह स्वच्छ हार, दिव्यपुष्पदाम, कंकण, मुकुट, जल का नीड़ - घट, सफेद धवल प्रशस्त सुन्दर हंस के रंग का था, राजा को दिया। तीर्थ में जल का स्नान ही मुख्य और मंगलमय होता है। वृक्षों से आच्छादित उत्तम वस्त्र, स्वर्णनिर्मित सिंहासन, कमल की लीला का हरण करनेवाला स्वर्णदण्डनाल, चामरों से सहित देवदार वृक्षवाले उस भूमिप्रदेश में वह राजा
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