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विजमविलागिरितादिसियवरविसरणरविवहार सावितिखंडचंडरिखंडण होणाहन तणतकलमरण सिहरिगुहाङवारुग्याडहि कलिसटखरपहरेताडहि जश्तठमपुराडा राहासयुमुहागरुमउदासजयगिरिवरसिहरगानिकया जायग्रहपिदासुराजाय
उत्ताचमुपमहावदाणुपिरिखिल जसवश्नुतपसणुअकित छामेहरारकरिमङवरक्षण तरहचकवत्तिा
महधरसेना हिगिरिटक
दंडस्तकरिता मेहेसुरकबा
वाणिस्त्र मुगुफाजम
ननिविवि विड्डविपडू उर्विसहाज हयड्त्रण मणुनिक
उसपङ्गमण रहकरपक्वहितासापसाउपसणसमुहिल परिणमसयतणमगरहरियाणाणारामणविलास
तथा विजयार्ध पर्वत पर विजय करनेवाले हे देव, उत्तरदिशा में जो देव मनुष्य-सूर्य और तीन खण्ड धरती मेघेश्वर, मेरा कहा करो। निश्चित रूप से तुम पहाड़ के किवाड़ को प्रताड़ित करो। वह अच्छी तरह विघटित है यह भी तुम्हारी है। प्रचण्ड शत्रुओं को खण्डित करनेवाले कुलमण्डन हे नाभेयतनय देव, तुम यदि पर्वत होकर उसी प्रकार खुल जाये जिस प्रकार आहत दुर्जन का मन फूट जाता है।" अपने स्वामी के मनोरथ को के गुहाद्वार को खोलते हो, वज्र के तीव्र दण्डप्रहार से उसे प्रताड़ित करते हो, तो हे आदरणीय, मार्ग हो जायेगा! पूरा करने के लिए उत्कण्ठित वह (सेनापति) 'जो प्रसाद' यह कहता हुआ उठा। तरुण तोते के शरीर और तुम्हारा पुण्य महान् दिखाई देता है कि विजयाध पर्वत के शिखर के अग्रभाग पर रहनेवाला मैं भी, जिसका पन्ने के समान हरे तथा नाना प्रकार के गमन के विलासों से भरे हुए दास हो गया हूँ।'' तब राजा भरत ने सेनापति का मुख देखा। यशोवती के पुत्र ने उसे आदेश दिया - "हे
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