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सत्यचक्रवर्त्ति मेघारु सेनाप तिष्टक्का करण
तरथचक्रवर्त्ति सिंघासनवइवे २
हा सेमाही नहंमूला जलहिजस समुझाडिंडीरक्ता व लंडेक्रितीच्च मयस्सम्यचदर्विवफलता युबती तार है जयइणवल्यानुशल रहेस किन्नकृतको वरतणुमनमहेण जिंसभागहे
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यन।।
टापहा रमहि
पाव
दिपुल
कपडा सिइति
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सन्धि १४
जिसने मगधराज को जीता है और अपने भुजबल से प्रभास को दलित किया है, ऐसे वरतनु के मद को चूर करनेवाले भरतेश ने परम शत्रु-राजाओं को नष्ट करनेवाले सेनापति को आदेश दिया।
लुनिलि से हय्या
श्हा सा
हायायसु
रहेस
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सिमणि सेहरु सजणसविल विडला सोपलाश्पणविय सिप्स हसि मुहससिकिरणपसा रिधवलियदि एव घणच्चु पिस मडरमण हर गिरु सुनुयण सरधरुणिरुवमुणिरु सोकस
जामत
निवसश
खंडमडा,
चामया
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नरथचक्रवच
कामश्मन समरुद्धिन नतीकरणं ॥ ३
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दुवई - तीन खण्ड धरती को जीतनेवाला राजा जब अपने शिविर के साथ निवास कर रहा था तभी कानों में कुण्डल पहने हुए मणिशेखर नाम का देव वहाँ आया। अपने मुखरूपी चन्द्रमा की किरणों से दिशाओं को धवलित करनेवाला वह प्रणामपूर्वक बोला "नवमेघ के समान गूँजती हुई मधुर और सुन्दर वाणीवाले तथा भुवन का भार उठानेवाले हे अत्यन्त अद्वितीय सज्जन,
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