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उनकी अँगुलियाँ सीमित रहती हैं। बाल नीले, प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव, दुष्टों के प्रति द्वेषभाव नहीं। समस्त शरीर से निकलती हुई सुन्दर भाषा, जो नाना भाषाओं में परिणत हो जाती है, उसी प्रकार, जिस प्रकार जल इन्द्र के आदेश से स्तनितकुमार मेघ, परिमल से मिले हुए भ्रमरकुलों से सम्मानित उत्तम गन्धवाला जल की धारा परिणमन के बश से नाना वृक्षों के द्वारा मीठी, कड़वी और तीखी हो जाती है। छहों ऋतुओं में बरसाते हैं॥१॥ समृद्ध करनेवाले वृक्ष फलों के भार से धरती पर झुक जाते हैं। धरती दर्पण के समान दिखाई देती है। परम प्रभु के आगे-पीछे शोभित होते हुए सात-सात कमल चलते हैं। वे जहाँ पैर रखते हैं वहाँ देवों के द्वारा आनन्द से लोग जग में नहीं समाते । मन्थर शीतल वृक्षों की सुगन्ध का जिसमें सार हैं ऐसी हवा एक योजन संयोजित विमल स्वर्णकमल चलता है। भुवन में इतनी बड़ी प्रभुता किसकी कि जिसके घर में वज्र धारण तक बहती है, स्वामी के पीछे जाती हुई ऐसी शोभित होती है, मानो स्नेह से उनके पीछे लग गयी हो। करनेवाला इन्द्र दास है। धरती अट्ठारह श्रेष्ठ धान्यों को धारण करती है, मानो रोमांचित होकर नाच रही हो।
घत्ता-नदियाँ जलरूपी दूध प्रवाहित करती हैं । जहाँ-जहाँ स्वामी विहार करते हैं वहाँ-वहाँ की तृण, मलविहीन आकाश भी दिशाओं सहित इस प्रकार शोभित है जैसे पानी से धोया गया नीलम और माणिक्यों काँटे, कीड़े और पत्थर तथा धूल नष्ट हो जाती है ॥२॥
का पात्र हो। पवित्र दिव्यध्वनि प्रवर्तित होती है, जो आठ हजार धनुष बराबर मानवाले क्षेत्र में प्रसारित होती है। यक्षेन्द्र के सिर पर स्थित विचित्र रत्नों की आराओं से लाल, सूर्य के बिम्ब के समान, तथा लीला से
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