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सुणवजिसमन्त्रिठपंचताएं बजरइजिण्डिस लियाद कहिपजविहिन पहिं सं फासलोय सातपदिं माणवयणकावरसधा एडिं आणापाणापाणादिदिसिद्धिश्रुतिसमियतिर सिकारक मिणाणादिदडलसिक जगलेर ससाईपचणयार कळयभ्यरोहार हमी | रसमुगफडवियडयरक अोक चाधण लोमपरक थलयस्वउपयचडीवाय एकखर खुरकरिणहपाय उरसा मदोस्य अजगराई किरतादंग इंडविकवलुहाइ सरिसप्पविव रकाणियसले सरढंडुरगोक्षणामधे घत्र जलथरजले सुखगतरु गिरिसाथलयर गाम प्रस्तुवणे दावोयहिमंडलम शतहि पदमदी उलासेतिझये ।।१२ व जोयालकुलस्क्तद पवन लक्षणुयाणियमेया सिंखदीवरसायर वलया आराम ना जंतूदी वेस दसैंड्रो। मुखर वरदी वो मिगचंडे। मइरेखी रोघ्य मुद्रणामा दीस रुपोसमो कुंडल समासंखारुजगो लुजगवावरोविङको ऊंचो एवढी वसुमुद्दा चूर्ण पिडदा वियणिय मुद्दा एण्सुतिरिया पठाण। जलयरथ लय रण हयरयाणं विग्रलेदियपं चंदिययाण गहिनो कायमाग साहित्य ओमण सहमुछेद पर मंदी सश्वमिदेहं अवियडकरणीकोनिवरिहो वा ९५.
असंज्ञी पाँच इन्द्रिय पर्यातक जीव के नौ प्राण होते हैं। सम्पूर्ण छह पर्याप्तियों, स्पर्श, लोचन और श्रोत्रों, मनवचन-काय-रसना-घ्राण-श्वासोच्छ्वासों और आयु इन दस प्राणों से संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवित रहते हैं। दुर्दर्शनीय नाना प्रकार से उनका मैं वर्णन करता हूँ। जलचर पाँच प्रकार के होते हैं-मछली, मगर, उहर, कच्छप और सुंसुमार। नभचर भी सम्पुट, स्फुट और विकट पक्षवाले होते हैं। दूसरे घने चमड़े और विलोम पक्षवाले होते हैं। थलचर चौपाये चार प्रकार के होते हैं- एक खुर, दो खुर तथा हाथी और कुत्तों के परवाले। उरसर्प, महोरग और अजगर इनका क्या, हाथी इनके कौर में समा जाता है। भुजसर्पों का भी भेदों के साथ वर्णन किया जाता है। ये सर ढूंढर और गोधा नामवाले होते हैं।
घत्ता - जलचर जलों में, नभचर वृक्षों- पहाड़ों में और थलचर ग्राम-नगरों में निवास करते हैं। द्वीप और समुद्रमण्डल के मध्य जिनों के द्वारा प्रथम द्वीप कहा जाता है ।। १२ ।।
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पिछले गणित की मर्यादा के विचार से एक लाख योजन विस्तारवाला अत्यन्त विशाल जो असंख्य द्वीप और श्रेष्ठ सागरों के वलय आकार को धारण करनेवाला जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड, पुष्करवरद्वीप, वारुणीद्वीप, क्षीरवरद्वीप, धृतवरद्वीप, मधुवरद्वीप ( इक्षुवर) नन्दीश्वरद्वीप, अरुणवरद्वीप, अरुणाभास, कुण्डलद्वीप, शंखवरद्वीप, रुचकवरद्वीप, भुजगवरद्वीप, कुशगवरद्वीप, क्रौंचवरद्वीप- इस प्रकार द्वीप समुद्र हैं, जो दुगुने विशाल और अपना आकार प्रकट करनेवाले हैं। इन द्वीपों में तिर्यंचों का निवास है। अब मैं जलचर, थलचर, नभचर और विकलेन्द्रियों एवं पंचेन्द्रियों के शरीर का प्रमाण कहता हूँ साधिक एक हजार योजन का विस्तारवाला पद्म (कमल) है।
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