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सईण पुणुसोझिणासंबाहर जहिकारतलांकालास्याददिकोहिमणावश्मरगयाई जहिक कारणाहारहाथ कल्लोलहंसपकविपणाच जहियाणिपडायलराणा उरिवणुर्जसुणदिह जाश्यारहाणुसहधरिउताए पिउहाण्यगय/माणमार्यगदादावहश्याइजातहधिवात तवसिविसदेव जडसेर्गेविनयविनडुसहाश्कमलावासयुमुदतिलाश सिरख्याधणासाधास्त विष्णवंतवहापियसविसजेविादिगणपथगडायलखलिया जिणवणालविणमिगलि
गंगानदीहरेस
रथचकर्तिम
गमन।
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ANTIPUR
यामा
काव्या
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मानो सन्ध्याराग की कान्ति से शोभित हो । जहाँ क्रीडारत कीरकुल ऐसे जान पड़ते हैं, मानो स्फटिक मणियों की भूमि पर मरकत मर्माण हों। जिसकी लहरें कंकहार और नीहार की कान्तिवाली हैं, उनमें हंस पक्षी भी ज्ञात नहीं होते। जहाँ, जो अप्सरा पानी स सफेद अपने बहते हुए दुपट्टे को नहीं देख पाती, उसके द्वारा परिधान अपने हाथ से पकड़ लिया जाता है और कहती है- "हे माँ, यहाँ स्नान हो चुका।" जिसमें मातंगों (गजों और चाण्डालों) को दान का स्नेह (चिकनापन और राग) बहता है, और जिसमें तपस्वी भी अपने शरीर
को डालते हैं। जड़ ( मुर्ख और जल) के साथ विद्वान भी मूर्ख हो जाता है, जहाँ लक्ष्मी के आवास में साँप शयन करते हैं। जो साँप और धनवान् सविष तथा बहुप्रिय (वधुओं के प्रिय या अनेक के प्रिय) हैं, उन्हें भी वह धन की आशा से धारण करती है। जिन भगवान् के जन्माभिषेक के समय दिव्यांगना के धन स्तनयुगल से निकली हुई जो जिनेन्द्र भगवान् के स्नानाभिषेक के प्रारम्भिक दिन से बह रही है,
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