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सरथचक्रदर्शि कासन्यवरतण देवनाकरिस मुडकीवदीलंगू करिसिंधुनदील प्रकरिपश्चिमम डेद्यागतः ॥
वळ इंद्ररंई लइरखी रतरंग इंचा धम्मुवजी बोका र परमेस खडजेमनुसरण तंणिसृथिवित रहेंवा वियना पविवरुदिमोकप्रिय अज्ञादिलए हिमहोपति श्रारण रुघा पूरइमड महिवडज सेण दतिणविलासवासुकिं व मिठं उत्त्रमुजा अहिमाण धणु एव यणुकंपायमष्फुलियाडमा सदा क्षणिय सुयरिक पिक कोडा वर्णिम वरतपुस्रुजिणे
श्रेष्ठ दिव्यांग वस्त्र लें, दूध की तरंगों की तरह चामर स्वीकारें, जिस प्रकार जीव के लिए अभ्युद्धरण है, उसी कार तुम्हीं मेरे लिए शरण हो।" यह सुनकर भरत ने कहा, "इसे और दूसरे को मैंने बन्धनमुक्त किया, इसे लेकर अपने घर आओ और मेरे आज्ञाकारी होकर रहो।"
धत्ता- "मेरा राजा यश से पूरित किया करता है, द्रव्यविलास और विस्तार का क्या वर्णन करूँ? विश्व
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में अभिमान धन ही उत्तम है, क्या यह वचन तुमने नहीं सुना " ॥ ५ ॥
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खिले हुए वृक्षों के रस को दरसानेवाली, शुकसमूह के पंखों की कतार से कुतूहल उत्पन्न करनेवाली द्वीप की सुहावनी सीमाओं को ग्रहण कर वरतनु देव को जीतकर,
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