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चिसुहावणिय वेश्वधरनिदी वहातलिय पुणु जयइंडदिसह होमिलिन सरागंसा हणुसंचलिठा पक्किमदिस सम्मुधाइयन सङ्घ जिकहिंमिणमाश्यः यमुपयलिय फेजलन सक्छ जिलड थंड संकलन सवळ जिगयमयसिंचियन समिध्यमा चिण्ड सबळ जिगेजजा बलिरणिड सहन्छ। निर्वादिविदणिउं सक्ळजिक त्रणिरुद्ध दिसु सकळसिरहेंगाधर सबळ जिलमित्र लभरि लमरु सत् कविचलिचवल चमरु सबळ जिपरिक्षाश्यामुरु सजि संचरतखयरु सजिका मिलिगी यस रुसद्दजिविलसियकुसुमसाला कमलदलेवगिरि जलु सास अणिवेणिन (साहपु
फिर जय के नगाड़ों के शब्दों से मिली हुई सेना राजा के साथ चली। वह पश्चिम दिशा के सम्मुख दौड़ी। सर्वत्र वह कहीं भी नहीं समा सकी। घोड़ों के मुखों से निकलते हुए फेन से उज्ज्वल वह सर्वत्र भटघटा व्याप्त भी। सर्वत्र हाथियों के मदजलों से सिंचित थी। सर्वत्र ध्वजमालाओं से अंचित थी। सर्वत्र गीतावलि से मुखरित थी। सर्वत्र चारण-समूह से ध्वनित थी। सर्वत्र छत्रों से दिशाएँ अवरुद्ध थीं। सर्वत्र सुरभि का रसगन्ध
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सिंधुनदी तुटेसे न्पश्रागमन
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प्रसरित था। सर्वत्र भ्रमर मंडरा रहे थे, सर्वत्र चंचल चमर चल रहे थे। सर्वत्र विद्याधरों का संचार हो रहा था सर्वत्र स्त्रियाँ गीत गा रही थीं। सर्वत्र ही कामदेव विलसित था।
घत्ता - वृक्षों को मलते, पहाड़ों को दलते, जल को सोखते हुए राजा के द्वारा निवेदित
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