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मानतदाताहेकंचणमुरखणजोश्य सानेगल विषलाध्यउ मुरदाचदालीलाहरदिही
परवणामक रअरविंदचंद
सरथयात विमलागणह
वापसाधना मडाशजणे
नणदेखक सरणदणहो तर वरतनदेवनित
हदाजोजाणसव एहसयक्र
करसासोचहि विमामांकित
परुअमरुविमय घुदधिकरिकार वशाजात
इतातणजितनि समिवियथाव
मणियपुपुइयुछि यन गउतहिदिराच्यकड मयरहरमझेखचियसरकाबला देविगाउँसगोलकलापणा
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स्वर्णपुंख से आलोकित उसे राजा ने उठाकर देखा। देवों और दानवों की दर्पलीला का अपहरण करनेवाले राजा ने भी इसकी इच्छा की और अपने थोड़े पुण्य की निन्दा की। वह स्वयं वहाँ गया जहाँ राजा भरत सागर राजा के नाम के ये अक्षर उसने उसमें देखे-"अरविन्द और चन्द्रमा के समान विमलमुख आदि जिनेश्वर के मध्य में तीरों से अंचित था। के पुत्र मुझ भरत की जो-जो सेवा नहीं करता वह चाहे नाग, नर और अमर हो, मुझसे मरेगा।" तब उस घत्ता-अपना नाम, गोत्र और कुल बताकर
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