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गलरवगहिसासरिवहिरसुलवलिहिरु सविसायाचविसायटसविक माइंदयाइएमाइंद बिहाकरलककरहियससियन प्रियदरिवरहिंडस्ट्रिसियत परलच्छोगहणुवंठियउवणे साढणसदलविसठियन अछमिसरुतमसरियदिसि थिउणिसिनवनासेंगदारिसिामनाम
हिहिणसमविखणियकलचिवईचाईचक्करमाश्नमंचमडारिष्टरुदाबिकवाडवड़ा वजयतवनमा विथकाश नहिंशवसरिक्षिणयसमामि सरदेसिजिणवरिहणमिठ रहवाहिडसक्षसोतण लशचक्रवति, कासन्यायम्य नुवराण
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घत्ता-पृथ्वी के स्वामी ने निज कुलचिह्नों, धनुषों और चक्रों की पूजा की। महान् शत्रुओं का हरण करनेवाले मन्त्र का ध्यान किया। उस द्वीप के किवाड़ खुलकर रह गये ॥२॥
वह मंगल ध्वनि से गम्भीर था। नदियों के कूटतटों पर वह क्रूर शत्रुओं के वध में आदर करनेवाला था। शाकवृक्षों से सहित होनेपर प्रभु के साथ वह विषादहीन था। मातंग (आम्रवृक्ष) में स्थित होने पर वह लक्ष्मी
और चन्द्रमा के समान था। कवि (राजा विशेष) के छिपने पर वह कवियों के द्वारा प्रशंसनीय था, जो हरिवर के निकट होनेपर हरिवर से भूषित था। दूसरों की लक्ष्मी को ग्रहण करने में उत्कण्ठित समस्त सैन्य इस प्रकार वन में ठहर गया। सूर्य अस्त हो गया। दिशाएँ अन्धकार से भर उठी । राजा रात में उपवास में स्थित हो गया।
उसी अवसर पर सूर्य उग आया। भरतेश ने जिनवरेन्द्र को नमस्कार किया। उसने शीघ्र अपना रथ इस प्रकार हाँका
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