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यमिलतमझ्याचवलसंगलंतको गलछियखवखाचरे कळवखयारमययोहारहवलि
यारयामा बोधरियण
सहमहि वसुखरस रिडवाया।
निचराजामा वासिठसा
रात्रावास सत्यवति
हा वर्षमा कशिवराजा
पसाहपुणि प्राशमिले।
सिपणवादा
आ
जिजिपसंभ सप विउदनासाणे उघवासणणरमाशयहिवासिठरावकरयण मिहतनिझ्यवहाबिद।।
उपवासपूर्वक दर्भासन पर इस प्रकार बैठ गया, मानो जिन भगवान् जिनशासन में स्थित हो गये हों॥१२॥
जिसमें चंचल और संघटित लहरों के द्वारा विद्याधर-वधुओं को उछाल दिया गया है। जिसमें कच्छप, शिंशुमार, मगर और मत्स्यों की पूँछों से जल उछल रहा है।
घत्ता-सुन्दर प्रसाधनों से युक्त सैन्य वन में ठहर गया। रात्रि में परमेश्वर को प्रणाम कर राजा भरत
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राजा ने चक्ररल की पूजा की। जिस प्रकार उसकी की, उसी प्रकार दूसरे दण्डरल की पूजा की।
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