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मुहयकयरमणता झदिसउिनणासामुपयुष्ठ जर्दिकपरिदहिरिहीउजेमामहिमाउखलेदि। उतितला काहलियर्वससवपंतिणकरइधरकम्मुसिंधुणतिववसंख्यहागोविकाति मशायरायवकडिसयाविनार्टिसितालकालावयासु मंडलिथगोवगायतिराजहिसिंग समुलायसहचरेहिं देवाग्मिचारुपरवरदिघवातंगोहमयने गणेचरतहिरिणसिंगरखन कर यमासाहार कहरगार दिहसवरमुलिंदशाशाड़वध्यामणथयारचलवलियक लेवरस बंधा कढिपतिकडचंडकोदंडकमागधजगणलहणा सुमडहालविरलहसणुन लमुहासहिपिळणिवसणा गयमनपसरपंकचत्रिवियगुंजादामहसण अपकविलकेशदिरा रुणदारुणतंवणयणया तिकखरुपापहरपविद्यारियतितिरमारदरिणया सहयदंतिदलकयों दिरसंचियचारवारया तिलतरुववरचणीलालक्षिज्यकणस्यादिसियसंस्तविमलसगिरी दणरवासरायगया देसविससमायसवाहलचमरीकहकरणाया पीयससायट्युमरयमुरख्यम हिहरकेदरलया सवरावयापकमलरसलपडखंधहरियाडिसमाहगलगलमलिणणवजलहरकवि सारिककादया न्यायापडसमावमालयकरादिविहकिरायरायया यरुलयवसणिहिनाणियदहा महाबललग्गसालयातअवलोइझणकरणसणवंतधातवालया पहनतरतजतिथणधुरिणामो
जहाँ राजा के मुखरूपी कमल से रमण करने की इच्छा रखनेवाली वधू गर्म उच्छ्वासों के साथ बैठी हुई थी। है, गजमद की प्रचुर कीचड़ में सनी हुई गुंजामालाएँ ही जिनके आभूषण हैं, जो धुंघराले और कपिल केशों तथा जहाँ खोटे राजाओं की ऋद्धि के समान भैंसें, खलों (खलों और दुष्टों) के द्वारा दुही जाती हैं। कोई गोपी खून से लाल और भयंकर आताम्र नेत्रोंवाले हैं, जिन्होंने तीखे खुरपों के प्रहारों से विदीर्ण कर मोरों और हरिणों काहल और वंशी का शब्द सुनती है, वह घर का काम नहीं करतीं और सिर धुनती हैं। कोई गोपी कृशोदरी को मार डाला है, जिन्होंने तीरों से आहत हाथियों के दाँतों से निर्मित घरों में अचार और बेर इकट्ठे कर रखे हैं, और अनेक बच्चोंवाली होकर भी संकेत स्थान के लिए जाती है। जहाँ क्रीड़ा का अवकाश देनेवाली ताली जिन्होंने ताल वृक्ष के पत्तों, लाल और नीले कमलों के कर्णफूल बना रखे हैं, जो दिशाओं में फैले हुए विमल बजाते हुए गोप मण्डलाकार होकर रास गाते हैं। जहाँ अपने सींगों से तरुवरों को उखाड़नेवाले वृषभों के चन्द्र के समान राजा के यश से भयभीत हैं, जिनके हाथों में वंश-विशेष में उत्पन्न मोती और चमरी गाय के बाल द्वारा गम्भीर ढेक्का शब्द किया जाता है।
हैं, जो सुशीतल और कुसुमरजों से सुरभित महीधरों की गुफाओं का जल पीते हैं, जो शवरियों के मुखरूपी कमलों ___घत्ता-ऐसे उस गोकुल को छोड़कर, हरिण के सीगों और उखाड़ी हुई जड़ोंवाले शवर पुलिन्दों से के रस के लम्पट और कन्धों पर अपने बच्चों को उठाये हुए हैं, जो शिव के कण्ठविष के समान मलिन (श्याम) गहन वन में जाते हुए उन्होंने पशुओं के मांसाहारों और पहाड़ों के मकानों को देखा ॥११॥
और नवमेघों की छवि के समान शरीरवाले हैं, ऐसे विविध किरातराज हाथ जोड़े हुए राजा भरत के पास आये।
भारी भय से जिन्होंने अपने शरीर और भालतल को धरती पर लगा रखा है, तथा जो अपने बालकों को झुका रहे बौने तथा सघन स्थूल बल से जिनके शरीरों के जोड़ गठित हैं; कठोर बाणों से प्रचण्ड धनुष जिनका हैं, ऐसे उन भील राजाओं को करुणापूर्वक देखकर वह राजा अपने परिजन के साथ उस गंगा नदी के द्वार पर पहुंचा, कुलक्रमागत पितृकुलधन हैं: छोटे स्थूल और विरल दाँतों से उज्ज्वल, जिनके मुखपर, मयूर पंख का आच्छादन कि जिसमें नहाती और तैरती हुई यक्षिणियों के स्तन-केशर के आमोद से भ्रमर इकट्ठे हो रहे हैं,
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