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पहावेंणाश्सप्यु अवलायविसरलिययतियार सावेषिणमंतिपउत्रियाउसरहेसरायणामविया ।
उसालमविचिनियमछियाउ चक्कवश्लहणाम कियान वापयियस्कुरपतियाठाशना मारह
गयगावें सविणयहावें चकणवृदिवससकापण मादेवलाथ
वविधुश्वयणहिंगाणारयणहिंदूपविदिडुण चक्रवृतिकड़ना मुखणिकरितर
रेसला सविदवविधावियसयमदण विदर थचक्रवर्तिस्तुति
प्पिणुवोलिटमागहण जयसहमहागयलाल गामि उपहलाहोमङपरमसामि उडांडा दरिहासणाक उडड्डअवअरिवरदिपार डाउजमजमकरणाकाविसंनि उईवरुणु
सयलजपविडियसलिउधणमधाणश्यदि पिहियकास उईयवणुपवलबलपथासु ईसाणुमहासरणमियपाठ बर्दण्जे जगरायाहिम
करमा
बाण की सरल पंक्तियाँ पढ़कर तथा मन्त्रियों के वचनों का विचार कर
घत्ता-गर्वरहित मागध नरेश ने विनयभाव से प्रणाम कर और नाना रत्नों और स्तुति-वचनों से पूजा कर राजा को उसी प्रकार देखा, जिस प्रकार चक्रवाक के द्वारा सूर्य देखा जाता है।।१९॥
२० अपने वैभव से इन्द्र को विस्मित करनेवाले मगध ने हँसकर कहा-“हे महागजलीलागामी ! आपकी जय हो, आप मेरे इस जन्म के स्वामी हैं, इन्द्र और कुबेर के स्वामी आप इन्द्र हैं। शत्रुप्रवर को दाह देनेवाले आप अग्नि हैं, आप दम और यमकरण हैं, इसमें किसी प्रकार की भ्रान्ति नहीं है। सुधियों के लिए निहित काम, आप धन देनेवाले कुबेर हैं, प्रबल शत्रुदल का दलन करने की क्षमता रखनेवाले पवन हैं? राजाओं को अपने चरणों में झुकानेवाले ईशानेन्द्र हैं। आप ही विश्व में एकमात्र राजाधिराज हैं।
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