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हसरिसबदकिनिहाललावणेजकिणाजरककालाविवार तनसम्मिगंगापाश्चारुतारपक्षवंत । मायागदागबुगंधाघुलबद्वपालिहचारुविधाविसकंसर्विक्यारिदसकंधलंरायसपाहिवा णाएकाएकीरतिर समाधिसा तडिकोतिहासाश्चंदावहासा गवखंतणिग्गनिया धूमाहवासा र ऊतिसंचारिमारिवासा चिमुवंतियबाणसागल्याणं गाणंपिहक्का खणा गयाणं सरुम्मुकदेहाजहिचला गयारासहारासहादिणिसहा तणतणाशीष कालिदासा पलियातिववाणिहित्रावासा याहीतियाणा विहासकलेया पाएकति बजविणिनगरीया सरितणदहाणपत्रणलगा पसत्तासुगहिणीकंतजगा बलिजातिए दिज्ञनिगासाकरीणतणतोयणखाणलाणंदरीण पपतिश्रामध्यसाहिणाणा प्रलयतिर अपहपताण संसतिअषणरिदयकामतमामाकणिमामाठगाम मवसरावे। सरालल्चारापरणवद्धतापरावारवार कलहगावावर्णतेपयहा लयापबयाणियलेंनि नहा लेढाउजनाएपशाणिविग्यपिएपेकसाइंयाग सिधमंजच्छोणाविरामेणबुन्न सवसाणिवासंसाचंभावनांसहसटसदेवसमिदं मंपवणणठाणविषयवाणियथ २४
होकर, समान दीर्घ पथ से थके हुए, गृहिणियों के गले से लगकर सुख से सोये हुए थे। हाथियों को घास जिसमें यक्षिणियों और यक्षों का कीड़ाविकार है ऐसे उस वन में, गंगानदी के सुन्दर तट पर राजसेनाध्यक्ष देकर सन्तुष्ट किया जा रहा था। घोड़ों के लिए तृण, भोजन और खाननमक दिया जा रहा था। कोई अपने की आज्ञा से सैन्य ठहर गया। वह सैन्य दौड़ते हुए महागजों के मदजल से गन्धयुक्त था, उड़ती हुई तथा बाँस साथियों से पूछ रहा था, कोई लम्बे मार्ग के बारे में बात कर रहा था। कोई राजा के काम की प्रशंसा नहीं लगी हुई पताकाओं से सहित था, जो बैलों और यश से अंकित था। उसकी समतल भूमि दूर-दूर तक फैली करते हुए कह रहे थे कि हम दिन-प्रतिदिन एक गाँव से दूसरे गाँव कहाँ तक घूमें? यह खच्चर और खच्चरी हुई थी। कपड़ों के तम्बू और मण्डप फैला दिये गये थे। जिनके गवाक्षों से धूम-समूह निकल रहा था, ऐसे और चारा लो-ऐसा एक ने दूसरे से कहा। अपनी गरदने ऊपर करके ऊँट जंगल में चले गये और वहाँ लताओं तथा संचार योग्य प्रचुर गन्धवाले निवास बनाये गये। अश्वों के जीन खोल दिये गये। और ढक्कार शब्दों के पत्ते तथा पानी लेने लगे। "हे प्रिय, अच्छा हुआ, यात्रा से निर्विघ्न आ गये। तम्बुओं को देखो और शीघ्र से आते हुए गजों के भी। भार से मुक्त है शरीर जिनका, ऐसे बैल भी इच्छापूर्वक चले गये। गर्दभी के लिए आओ।" वेश्याओं के निवास से सहित, अपने-अपने चिह्नों से उपयुक्त, हर्षयुक्त, तम्बुओं और देवों से सहित, शब्द करते हुए गर्धभ भी चल दिये। वृक्षों और घास के लिए दास दौड़ रहे थे। चूल्हों में दी गयी आग जल यह इस प्रकार का स्थान राजा ने बनवाया है। इस प्रकार किसी खिन्न व्यक्ति (सैनिक) ने कहा। उठी। नाना प्रकार के भक्ष्यभेद बनाये जाने लगे। कितने ही लोग भोजन कर, तथा शरीर के पसीने से रहित
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