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शोहणणवणलिणणेना सरणिदिनाएपरियलियाचेलाए हासणिठवालाण खरवलया घियायामसाइघटिया सवणियहरति कहकववियरंति अवतपाडेसातल्लाकाढण थिरथाखादणसणाहिणारण णवपलिंगमनणणयप्फुलवयपणाबदडरयणणगाया पादातिमगारनिरसमगाणाक्काभमाणसताससुष्माइंगतातसमापन यादिरामार्शगामाऽसामाविसमाश्संठा विभावकंठा हलदणिवासाईलधनुदसा पविरंगदहाअहिपाविहं पिकविमणियससुखरसरिफ्नुाधलायडरगंगाणशमहि यलेघाला किम्मरसरसहलेतही वलायराए टुक्काएँ साष्डाणहिमवतहो पायसि हरिमगारोहणसिणि गरिसहणाहजयखणवाणिणिमालणावरणियादवायामयरेकि यणवमहपडायाणविसमविडासमन्त्रसतिधरणीयलिलीपणाचदकति गणिझमकला होमकादिणि किनिहकरालव्यवहिणि गिरिरायसिहरयावरथणाहे गद्दारावलियसह्या। पाह विवरियकंदरदरिवख्यिसलधरणिहरकारिदक्षणाईकल सियटिलताजिरहा। नवकवाहिजय विजयलाह आयामहोपडियधरित्रियाग स्पटिजियणपियसद्दिपियाण पखला स्वलश्परिलषांठाशणियवाणासचिंताएगाय णियायपयवम्नीयहोसक्यविसपठरणाचा १२
जिसके नेत्र नवनलिन के समान हैं, जिसकी साड़ी खिसक गयी है, खच्चर पर बैठी हुई ऐसी बाला ने 'हा' कहा। गधे के पतन से गिरी हुई तथा मधुमुरा से चेष्टा करनेवाली उस बाला के द्वारा लोग काम से घायल मानो वह पहाड़ के घर पर चढ़ने की नसैनी हो, मानो ऋषभनाथ के यशरूपी रत्नों की खदान हो, मानो होते हैं और बड़ी कठिनाई से चल पाते हैं । अत्यन्त प्रौढ़, त्रिलोक में प्रसिद्ध स्थिर स्थूल बाहुवाले प्रफुल्लमुख जिननाथ की पवित्र वाणी हो; मानो मकरों से अंकित कामदेव की पताका हो; मानो राहु के विषम भय से सेनापति ने दण्डरल से पहाड़ों को विदीर्ण किया तथा मागों का निर्माण किया। चक्र का अनुगमन करते हुए पीड़ित चन्द्रमा को कान्ति धरती तल पर व्याप्त हो; मानो स्निग्ध निर्मल चाँदी को गली ( पगडण्डी) हो; मानो सन्तोष से परिपूर्ण सैन्य अपने मार्ग से दूर तक जाता है, नेत्रों के लिए सुन्दर ग्राम-सीमाओं, विषम निम्नोन्नत कीर्ति की छोटी बहन हो, हिमालय के शिखर जिसके स्तन हैं, ऐसी वसुधारूपी अंगना की मानो वह हारावली भूमियों, विन्ध्या के उपकण्ठों. कृषकों के निवासभूत देशों को लाँघता हुआ, घरों में प्रवेश करता हुआ, नागों हो: प्रगलित विवरों और घाटियों में गिरती हुई स्वच्छ वह (गंगा) ऐसी मालूम होती है, मानो पहाड़रूपी को विरुद्ध करता हुआ, तथा जिसने अपने शत्रु का नाश कर दिया है ऐसा सैन्य गंगा नदी पर पहुँचा। करीन्द्र की कच्छा हो । सफेद और कुटिल वह मानो उसकी भूतिरेखा हो, मानो चक्रवर्ती की विजयलेखा
घना-सफेद गंगानदी को आगत राजा ने इस प्रकार देखा मानो वह किन्नरों के स्वरमुख से भ्रान्त धरती हो, मानो आकाश से आयी हुई प्रिय धरती को चिर प्रतीक्षित सखी हो। वह स्खलित होती है. मुड़ती है, पर फैली हुई हिमवन्त को साड़ी (धोती) हो॥५॥
परिभ्रमण करती है. स्थित होती है, जैसे मानो अपने स्थान से भ्रष्ट होने की चिन्ता उसे हो। वह मानो सफेद नागिन के समान, पर्वत की वाल्मीकि (बिल) से वेगपूर्वक निकली है, और विष (जल जहर) से प्रचुर है।
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