________________
दकत्रिसन्या
जसाहाँ सबलुरदंगहोपचयाशामपिरहवरेवडिवगडापहवटित दहकरिणमुगुअल | अवियडवढयल किलपामिपरिसहरिवलनलियकुलसिहरिसटलवरवधु वहिरघजणवाचकनिक धुलिए।
रबारोहिण लधम्मलते जोकपडिम बुवकर लेणइदिने दणालेण
किन सय
TV
मंगलणिधा
सणसवाल नसरदेसाणमनणुणखसुधउधाणपंडिविलिउ गरुहरिददरमलिउ सेसिअहणकस्वस्म । सहेणाकरिधुणणिपतु महिणिवदि मह सखरखणा धितावलण सगाईलायणश्वमा
के समान नीले हैं जो त्रिलोक का प्रतिमल्ल है, ऐसा वह भरतेश, दूर्वांकुर, दही, चन्दन और शेषाक्षत (तिल) मणियों के रथवर पर आरूढ़ राजा ऐसा जान पड़ता था मानो नभ में इन्द्र हो। जिसका बाहुयुगल दृढ़ तथा मंगलघोष के साथ इस प्रकार चला मानो मनुष्य के रूप में कामदेव हो। ध्वज से ध्वज प्रतिस्खलित हो और कठोर है, वक्षस्थल अत्यन्त विकट है, जिसने अपने बल से कुलपर्वत को तोल लिया है, उस पुरुषसिंह गया। मनुष्य अश्वों से कुचल गया। गज अपना कण्ठ धुनने लगा। महावत धरती पर गिर पड़ा। भय से भरा के विषय में क्या कहूँ। उसके कन्धे सिंह के समान हैं जो बहरे और अन्धों का बन्धु है, जिसके केश भ्रमर हुआ, बैल के द्वारा फेंका गया। पात्र टूट-फूट गये। गोधन चूर्ण चूर्ण हो गये।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org