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कविमुणंतिमुणाणविवरण संवत्रणासमठवहसन सायठकाधगामियतठाताम ठाणुसमर्शपालोटाउधम्माहमाङसदलुतिलोयठविदिमिलायणकमाणविअप्पनाया सचिवाणसिरपल तंजियलोउजाश्ययनल पागलुहाश्यचगुणवंतवासबाघहवफार संजलिपवणविमासंबंधाबद्दपासुवि परमाणुस्त्रबिहाश्यामसुविधतात सहमविथूल थूलुसद्धसुपुष्यालुलपयलाणानियलाचउपयारुमुदमणध्मणु माग धुवणुसफासुससडसडमुखवारसमड़ाष्ट्रलसुडमुजोमालायायालुसाल लुबारणाणिवश्वाशुलुथूलुगुणधरणामंडलु सानिमाणपडलुमणिणिमालु सुद्धमुलुङ मुपरिमाणविससश्लग्गहिणिविडविणपाससुद्धमईकामाश्यमणामक्रमणलामा वगणपरिणाम घणाश्यहिरसहिंगणयाहिं परितमंतिसजाय विमेवहिं यूरणगलगमा हावाणित पाणलाशवविहाऽपश्तासिवउपरमजिणिणिसुविधाममुसुषमा देवसहरसहलालश्यां मुस्मितालपुरवश्यावृड्यनासोमय्यांसटसुपरसहा
थिए उपछजलविदामयजरुभ्यरिसहहापस्मकविसामा णिवचनरसागणहजाया वसासंद
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इनको कोई विलक्षण सुज्ञानी ही जानते हैं। काल सान्त और अनादि है। वर्तमान, आगामी और भूत-ये काल के तीन भेद हैं। उसका (व्यवहार काल) समस्त नरलोक स्थान है। धर्म और अधर्म समस्त त्रिलोक में व्याप्त हैं। उन दोनों से लोकाकाश व्याप्त है। आकाश भी अनन्त है और शुधिर के स्वरूपवाला है। अलोकाकाश वह है जो योगियों के द्वारा ज्ञात है। पुद्गल पाँच गुणवाला होता है। शब्द, गन्ध, रूप, स्पर्श और भिन्न- भिन्न रंग-रचनाओं से युक्त स्कन्ध देश-प्रदेश के भेद से तीन प्रकार का है। परमाणु अशेष अविभाज्य हैं।
घत्ता-पुद्गल के छः प्रकार हैं-सूक्ष्मसूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, स्थूलसूक्ष्म, स्थूल, स्थूलस्थूल ऐसा मेरा मन मानता है।
गन्ध-वर्ण-रस-स्पर्श-शब्द सूक्ष्म स्थूल मार्दववाला कहा जाता है। स्थूल सूक्ष्म ज्योत्स्ना छाया और आतप, स्थूल जैसे पानी ऐसा वीर (महावीर) ने कहा है स्थूलस्थूल धरती मण्डल मणि निर्मल स्वर्ग विमान पटल हैं। सूक्ष्म नाम सहित सभी कर्म मन भाषा वर्गणा और परिणामों, अनेक रसों-रंगों, संयोग-वियोगों से परिणमन करते हैं। पूरण-गलन आदि स्वभाव से युक्त पुद्गल अनेक प्रकार के कहे गये हैं-इसप्रकार परमजिनेन्द्र द्वारा कथित धर्म को धर्म के आनन्द से सुनकर, वृषभसेन ने शुभभाव से ग्रहण किया। उसने पुरिमतालपुर में प्रव्रज्या ग्रहण की। सोमप्रभ श्रेयांस नरेश मदज्वर को नष्ट करनेवाली प्रव्रज्या लेकर स्थित हो गये। इस प्रकार विषाद से रहित चौरासी गणधर ऋषभ जिनवर के हुए; ब्राह्मी-सुन्दरी
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