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विसठसुपवरागारहं सत्रसमझिमदेलपिडणवश्यमवरिमगणिजाणवजिपानवर पंचायत पंचविसापासोणिरतरे चतरामालकाशेणकयाहं सत्राणदिसतासमहंगका करणलकविसहअपवितवासलसातागिदडेवगत विहिकप्पहिंकवदेणविषु जायणहंसयान्माणकाइजिएशि पंचसयाविहिमिनवरिलहिं चनअनिविहिताहा पडरसहि नपरिधिहिचवारिसनहरुंघचरइयाणामणिणिपणासयतिष्टिविहिवरकमि सय तिमिणविदिजिणिरिरकमिसुचनकाहहम्मुछेहन अहाजसबाईसुरहानुण्ड श्वाणदिवधुणरविसनसणुपमाससमारिनगम अपनहतेगवरिविमाणपंचवीसजा ययापहाणाई सबहहालियलंघमिणु चारहजायणाईलाणणिण तम्मितिलोयहोसिटो सिमी एणयालासलकविक्रिमाससहरहिमणिहानायारा सिड्यावसवलणाममाराजा यणाजाश्यपीसने अहममुहश्यवाहल्लंघनासचिमाण्डामझि सयोमहारुहेसममा मणु उववादसहावे सिपमुक्तेलेंतितामउदिहार्दूि केऊरदारहि कंचीकलावहि। मंजाररावहिंसनापहासहि असुरहिसासहिं वेउछिमंगदिलकणपसंगहिचानसठाणेचि २०४
मध्य ग्रैवेयक में एक सौ सात, ऊर्ध्व ग्रैवेयक में इक्यानवे, नौ अनुदिशों में नौ और सुख से निरन्तर भरपूर पाँच अनुत्तरों में पाँच (चैत्यगृह हैं)। इस प्रकार चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस निकेतन हैं। इनको एकीकृत करने में विरोध नहीं है।
घत्ता-बिना किसी प्रकार के कपट के जिन भगवान् कहते हैं कि दोनों स्वर्गों की ऊँचाई सात सौ योजन है ॥२२॥
२३ उससे ऊपर के कल्पों में घरों की ऊँचाई पाँच सौ योजन, उससे ऊपर के दो कल्पों में साढ़े चार सौ योजन, उससे ऊपर के दो कल्पों में चार सौ योजन, उससे ऊपर के दो कल्पों में साढ़े तीन सौ योजन, उससे ऊपर के दो कल्पों में तीन सौ योजन और उससे ऊपर के चार कल्पों में अढ़ाई सौ योजन देवगृहों की ऊँचाई है। उससे ऊपर तीन अधोग्रैवेयकों में दो सौ योजन, उससे ऊपर तीन मध्यप्रैवेयकों में डेढ़ सौ योजन, उससे
ऊपर तीन उपरिम ग्रैवेयकों में सौ योजन, ऊपर-ऊपर अनुदिशों में पचास योजन और अनुत्तरों में पच्चीस योजन ऊँचाई है। सर्वार्थसिद्धि की चूलिका को लाँघकर बारह योजन जाने पर वहाँ त्रिलोक के ऊपर शिखर पर स्थित पैंतालीस लाख योजन विस्तीर्ण चन्द्रमा और हिम के समान छत्राकार भव्यजनों के लिए प्यारी सिद्धों की भूमि अर्थों से प्रचुर आठवीं पृथ्वी है।
घत्ता-अपने विमान के भीतर अत्यन्त मूल्यवान् शयन में एक समय से लेकर उपपाद स्वभाव से जो भिन्न मुहूर्त में शरीर ग्रहण कर लेता है ।।२३।।
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उसमें मुकुटों, हारों, केयूरों, दोरों, कांचीकलापों, मंजीर शब्दों, वेशभूषा के प्रसाधनों, अतिसुरभित साँसों, वैक्रेयक शरीरों, लक्षण प्रसंगों, समचतुरस्र संस्थानों,
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