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संलवपारीजाबखुनतादेविहिंगमाप लावणाणाणातणारा बाईसाणकायपडियारा इलाका संपडियारुसणकुमारमाहिंदरुह वणकरतिनिवरिमचनकायविडहाराषचठकापसमुन्न यमुखर होतिसहपडियाररहकर वरिखवणमिणपडियार यलोनवरिमणिप्पटियारा सप्याड यारणिपवियर्णिदडअनलसोखणिहिलङयहमिदड़ अहमियासानजिपिडिगयरायड पिण्यवश्वंटल कसमिश्राउतियसङसहसंगमु असुरजियतिण्कसायरसामु पारडंपन्नतिमि वियाणसवणदेवकपबुजिपरमानस अाइजपलसोवामहं दावहंदोणिपल्लपरिपुमह ससदहोश दिवपिरुल चंडजिमश्लशंखनउ यकपल्सक्सहोवरिसङजावदिपायरुचविहरिस कपासकसपणसमान तारारिखडगार पर पचासत्रपुष्णवण्यारह तेरहपणारहसताः । रदायकगायकवासलेवासवि पंचवाससएसनावासविचमतासबातालअडतालविपंचाक्षर जिपलगिरवि सोहम्माऽहिंसपऽसतिलयहं ग्रामअयंतहसुरधिलयहाला वेसलदसेवा चादहहहहारदवि वीसजिवावासाउद्दाववाहिमकहवितामजामतताससामुद्दईसबहह मित्रानकरसह कपकप्पाईयहंगहउँ घरकमिणापाविसमुविजन सक्कासाहअवहिरक्षव २७५
नाना शरीर धारण करनेवाले भवनवासी देवों से लेकर ईशान स्वर्ग तक शरीर से कामसेवन किया जाता है। है, ताराओं और नक्षत्रों की कुछ कम एक पल्य (अर्थात् नक्षत्रों की आधा पल्य, तारों की चौथाई पल्य)
घत्ता-सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में स्पर्श से कामसेवन होता है; उससे ऊपर के चार स्वर्गों (पाँचवें जानो। फिर सौधर्मादि प्रत्येक स्वर्ग में क्रम से सौधर्म में पाँच पल्य, ऐशान में सात पल्य, सानत्कुमार में नौ से आठवें स्वर्ग तक) में देव-रूप देखकर काम की शान्ति करते हैं ॥२५॥
पल्य, माहेन्द्र स्वर्ग में ग्यारह पल्य, ब्रह्म स्वर्ग में तेरह पल्य, ब्रह्मोत्तर में पन्द्रह पल्य, लान्तव में सत्रह पल्य,
कापिष्ठ में उन्नीस पल्य, शुक्र में इक्कीस पल्य, महाशुक्र में तेईस पल्य, शतार में पच्चीस पल्य, सहस्रार में फिर चार स्वर्गों (नौवें से लेकर बारहवें तक) में शुभ शब्द कामसेवन होता है। उसके बाद चार स्वर्गों सत्ताईस पल्य, आनत में चौंतीस पल्य, प्राणत में इकतालीस पल्य, आरण में अड़तालीस पल्य और अच्युत (१६वें स्वर्ग तक) मन के विचारों से कामसेवन होता है । यहाँ से ऊपर के देव काम से रहित होते हैं । काम में पचपन पल्य आयु होती है। इस प्रकार विश्वसूर्य जिन भगवान् सौधर्म आदि स्वर्गों की बनिताओं और को नियन्त्रित कर अनिन्द्य निखिल अहमिन्द्रों को अतुल सुख होता है । अहमिन्द्रों की तुलना में गत राग और अच्युतादि स्वर्गों की देवांगनाओं की आयु का कथन करते हैं। त्रिभुवनपतियों और वन्दनीय जिनेन्द्र का सुख होता है। देवों को सुख का संगम करानेवाली आयु का कथन घत्ता-दो, सात, दस, चौदह, अठारह, बीस, बाईस उससे ऊपर एक-एक सागर अधिक ॥२६॥ करता हूँ। असुर एक सागर के बराबर जीते हैं। नागकुमारों की तीन पल्य आयु जानो । व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट
२७ आयु एक पल्य ही है। सुपर्णकुमारों की आयु ढाई पल्य होती है। पुण्य से परिपूर्ण द्वीपकुमारों की दो पल्य वहाँ तक कि जहाँ तक, सर्वार्थसिद्धि में कल्याण करनेवाले देवों की तैंतीस सागर आयु है। कल्प और होती है। और शेष की डेढ़ पल्य होती है । चन्द्रमा एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य जीवित रहता है। सूर्य कल्पादिक स्वर्ग के देवों के जैसा ज्ञान विशेष है, वैसा कथन करता हूँ। सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देवों हर्ष को बढ़ानेवाले एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य जीवित रहता है । सौ वर्ष अधिक एक पल्य शुक्र जीता के अवधिज्ञान की गति वहाँ तक है
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