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शजास्पदममदियश्चविहावरणदोसगदवबीयतख यतिविज्ञापतिविणिमल्ल सणच उवापत्तियसतच्यावणि चनसंस्दावलीमपिशाणयपाणयमुरर्पचामियहे आरणयामर छहमियदेवगवडमुणतिमईत ताम्रजाम्बसचमणीत मुहएनहिण्यापुदिनसदर तिज गणाडिप्रेरकतिअपनर उपारिणिमविमाणचूडामणि जातादवमुणतिमहायणि पंचवीसजाय यपावणेसह संखोडातरंजाश्सवासह अवरविवह हिक्यसमरह गणितजोराणकोडि उअसरद जिाहअसरहत्तिहरिरकहतारह चंदहसूरदगुरुमगारह सुक्कहाउणुसंशाकिरस लाटा संखाईट दिविसानबाट घना शायविमणतिजायणकरयणपहही गाउअअहह होइहाणिससहमहिह।२० कामाचारुयससहजावद याकम्माहारुविरुवसावदलवाहाँ रुविदासश्सकह कवलाहारुणरोहतिरिकहमजाहारुपस्किसंघादाद मणसारणचनदेवा णिकायह अहमिंदविकरतितेतीसहि वालाणदिवरवरिससहासहि बता सकतासगुप्तास विपकपातीसर्विवाहावीसदि पक्काजावपचिहमसालदमण्यावासाहजिमाई बॉउणि बडुमहावहिसंबहिणाससंतितनियहिजयरकहिं पल्लजीविषणुशिणमुकणाससतिमपुता,
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कि जहाँ तक पहली भूमि धर्मा का अन्त है । फिर दो स्वर्ग के देव (सानतकुमार और माहेन्द्र) दूसरी नरकभूमि तक निर्मल देखते हैं और जानते हैं, फिर चार स्वर्ग के देव (ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ), तीसरी कर्म का आहार सब जीवों के लिए होता है, शरीरयुक्त जीवों का नोकर्म का आहार (छह पर्याप्तियों भूमि फिर चार स्वर्गों से सम्भूत (शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार) देव चौथी भूमि, आणत-प्राणत स्वर्ग के और तीन शरीरों के योग्य पुद्गलों का ग्रहण) होता है। लेपाहार वृक्षों में भी दिखाई देता है। मनुष्यों और देव पाँचवीं धरती को, आरण-अच्युत स्वर्ग के देव छठी भूमि तक जानते हैं। नौ ग्रैवेयक के महान् देव वहाँ तिर्यंचों का कबलाहार होता है। औद्य आहार पक्षी-समूह का होता है। चारों देव-निकायों का मानसिक तक जानते हैं जहाँ तक सातवाँ नरक है। अनुदिश के सुन्दर देव त्रिजग की नाड़ी को अपने शुद्ध अवधिज्ञान आहार होता है। अहमिन्द्र भी क्रमश: तैंतीस हजार उत्तम वर्ष बीत जाने पर मानसिक आहार ग्रहण करते से जान लेते हैं। महागुणवान् अनुत्तरदेव ऊपर, अपने विमान के शिखर तक जानते हैं। व्यन्तर देवों का हैं। फिर बत्तीस, इकतीस, तीस, उनतीस, अट्ठाईस; इस प्रकार एक-एक घटाते हुए सोलहवें स्वर्ग में देव अवधिज्ञान पच्चीस योजन तक जानता है। ज्योतिषदेवों का अवधिज्ञान संख्यायुक्त होता है; और भी बुद्ध बाईस हजार वर्षों में आहार (मानसिक) ग्रहण करते हैं। जितने सागरों की संख्या में उसकी आयु होती है, करनेवाले असुरदेवों का अवधिज्ञान एक करोड़ योजन होता है । जिस प्रकार असुरों का उसी प्रकार नक्षत्रों उतने ही पक्षों में वे निश्वास लेते हैं। पल्यजीवी देव एक भिन्न मुहूर्त में अथवा भिन्न मुहूतों में तीन मुहूर्तों और तारों, चन्द्रों, सूर्यो, गुरु और मंगल ग्रहों का। शुक्र का भी मैंने संख्याधिक विशेष अवधि बताया। से ऊपर और नौ मुहूर्तों के नीचे कभी निश्वास लेता है।
घत्ता-नारकीय भी रत्नप्रभा भूमि में एक योजन तक देख लेते हैं, शेष भूमि में आधी-आधी गव्यूति की हानि होती है ॥२७॥ Jain Education International
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