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The Yati-Vijnanapati-Vinimall, who is free from the two faults of attachment and aversion, has spoken about the knowledge of the universe. He said that the knowledge of the universe is like a vast ocean, and it is impossible to know everything about it. However, there are some things that we can know, and these things are important for our spiritual progress.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is divided into three parts:
* **The knowledge of the physical world:** This includes the knowledge of the planets, stars, and other celestial bodies. It also includes the knowledge of the different types of matter and energy that exist in the universe.
* **The knowledge of the spiritual world:** This includes the knowledge of the soul, the different types of karma, and the different paths to liberation.
* **The knowledge of the relationship between the physical and spiritual worlds:** This includes the knowledge of how the physical world affects the spiritual world, and how the spiritual world affects the physical world.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is important because it helps us to understand our place in the universe and our relationship to God. It also helps us to understand the nature of suffering and the path to liberation.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is not something that can be learned from books or from teachers. It is something that must be experienced through meditation and contemplation.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is a gift from God, and it is something that we should cherish and use to help others.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is a vast and complex subject, and it is impossible to know everything about it. However, there are some things that we can know, and these things are important for our spiritual progress.
The Yati-Vijnanapati-Vinimall said that the knowledge of the universe is a gift from God, and it is something that we should cherish and use to help others.
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शजास्पदममदियश्चविहावरणदोसगदवबीयतख यतिविज्ञापतिविणिमल्ल सणच उवापत्तियसतच्यावणि चनसंस्दावलीमपिशाणयपाणयमुरर्पचामियहे आरणयामर छहमियदेवगवडमुणतिमईत ताम्रजाम्बसचमणीत मुहएनहिण्यापुदिनसदर तिज गणाडिप्रेरकतिअपनर उपारिणिमविमाणचूडामणि जातादवमुणतिमहायणि पंचवीसजाय यपावणेसह संखोडातरंजाश्सवासह अवरविवह हिक्यसमरह गणितजोराणकोडि उअसरद जिाहअसरहत्तिहरिरकहतारह चंदहसूरदगुरुमगारह सुक्कहाउणुसंशाकिरस लाटा संखाईट दिविसानबाट घना शायविमणतिजायणकरयणपहही गाउअअहह होइहाणिससहमहिह।२० कामाचारुयससहजावद याकम्माहारुविरुवसावदलवाहाँ रुविदासश्सकह कवलाहारुणरोहतिरिकहमजाहारुपस्किसंघादाद मणसारणचनदेवा णिकायह अहमिंदविकरतितेतीसहि वालाणदिवरवरिससहासहि बता सकतासगुप्तास विपकपातीसर्विवाहावीसदि पक्काजावपचिहमसालदमण्यावासाहजिमाई बॉउणि बडुमहावहिसंबहिणाससंतितनियहिजयरकहिं पल्लजीविषणुशिणमुकणाससतिमपुता,
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कि जहाँ तक पहली भूमि धर्मा का अन्त है । फिर दो स्वर्ग के देव (सानतकुमार और माहेन्द्र) दूसरी नरकभूमि तक निर्मल देखते हैं और जानते हैं, फिर चार स्वर्ग के देव (ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ), तीसरी कर्म का आहार सब जीवों के लिए होता है, शरीरयुक्त जीवों का नोकर्म का आहार (छह पर्याप्तियों भूमि फिर चार स्वर्गों से सम्भूत (शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार) देव चौथी भूमि, आणत-प्राणत स्वर्ग के और तीन शरीरों के योग्य पुद्गलों का ग्रहण) होता है। लेपाहार वृक्षों में भी दिखाई देता है। मनुष्यों और देव पाँचवीं धरती को, आरण-अच्युत स्वर्ग के देव छठी भूमि तक जानते हैं। नौ ग्रैवेयक के महान् देव वहाँ तिर्यंचों का कबलाहार होता है। औद्य आहार पक्षी-समूह का होता है। चारों देव-निकायों का मानसिक तक जानते हैं जहाँ तक सातवाँ नरक है। अनुदिश के सुन्दर देव त्रिजग की नाड़ी को अपने शुद्ध अवधिज्ञान आहार होता है। अहमिन्द्र भी क्रमश: तैंतीस हजार उत्तम वर्ष बीत जाने पर मानसिक आहार ग्रहण करते से जान लेते हैं। महागुणवान् अनुत्तरदेव ऊपर, अपने विमान के शिखर तक जानते हैं। व्यन्तर देवों का हैं। फिर बत्तीस, इकतीस, तीस, उनतीस, अट्ठाईस; इस प्रकार एक-एक घटाते हुए सोलहवें स्वर्ग में देव अवधिज्ञान पच्चीस योजन तक जानता है। ज्योतिषदेवों का अवधिज्ञान संख्यायुक्त होता है; और भी बुद्ध बाईस हजार वर्षों में आहार (मानसिक) ग्रहण करते हैं। जितने सागरों की संख्या में उसकी आयु होती है, करनेवाले असुरदेवों का अवधिज्ञान एक करोड़ योजन होता है । जिस प्रकार असुरों का उसी प्रकार नक्षत्रों उतने ही पक्षों में वे निश्वास लेते हैं। पल्यजीवी देव एक भिन्न मुहूर्त में अथवा भिन्न मुहूतों में तीन मुहूर्तों और तारों, चन्द्रों, सूर्यो, गुरु और मंगल ग्रहों का। शुक्र का भी मैंने संख्याधिक विशेष अवधि बताया। से ऊपर और नौ मुहूर्तों के नीचे कभी निश्वास लेता है।
घत्ता-नारकीय भी रत्नप्रभा भूमि में एक योजन तक देख लेते हैं, शेष भूमि में आधी-आधी गव्यूति की हानि होती है ॥२७॥ Jain Education International
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