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बधश्सविदिविहंसियमगाहो होतिरिकश्चिनगागामि निहतिहमाणउरकायमिन पमि यानडातरियडतिरियतण अविहहउमाण्डमण्यनयाता तिर्हिगहिणहात्तिामाया तिरिकसाबखयहि पलिघमजाविसयलहंतिसंचहिणारखाउराजजाचाहारिमाय माणप
धारिखमारयासारस्वजतिपटमवीयावणि परिकतश्यवाखाहदुहखणिमुका चनकातिमहारट पंचमिव्हेकेसरिमयमाय महिलाहहिहेवितरक्कमिवह दोतिमपुत्र मलविसबमियदे आयुठमविदलहणरता कोविचरिदेसक्याप गिगाउजरगाढे किराणधsकोविकर्टिमिपाचपंचनगसेलहवसहधम्माल दोश्कोविक्लियरूमदार
उपरान्तरियासलामप्तरिसत्रण पलहतिणिम्मलजयकिलण सबछबिमाणुसनणजशयम पत्रसवपशरामउहगश्सोकहोसामिय केसवसवयहागगामियाघना/ पडिसडक यंताणतणारामणापाणकर णयहोणिग्नवि व्हीतिणहलहरचकहा तिर्दिकादाहिणार णविसह तिरियविजिणवढेवडाटा वायरसुदरतायपनयहोतिरामागयदेववहाकिवि पटेल हतिसराणियरसतामसासुपसलामनण्याजोस अकमिणत्यवासलासावण णाणाइखल
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क्योंकि वे अपनी विधि से मार्ग (पुण्य और पाप का मार्ग) नष्ट करनेवाले होते हैं । तियेच चारों गतियों में जानेवाला करता है। कोई मोक्ष गति प्राप्त करता है। तीसरे-दूसरे और पहले नरक से आया हुआ कोई जीव, महान् तीर्थंकर होता है, जिस प्रकार तिर्यंच, उसी प्रकार दुःख से पीड़ित मनुष्य चारों गतियों में जा सकता है। सीमित आयुवाले होता है। मनुष्य पर्याय में स्त्रियाँ शलाकापुरुषत्व को प्राप्त नहीं करतीं इसलिए वे निर्मल यश और कीर्ति को तिर्यचों का तिर्यंचत्व और मनुष्यों का मनुष्यत्व अविरुद्ध है, अर्थात् एक दूसरे की योनि में जा सकते हैं। भी प्राप्त नहीं करतीं। मनुष्य सब कहीं उत्पन्न हो सकता है। सूत्र रूप में यह बात कही जाती है। जितने
घत्ता-सुख से च्युत मनुष्य और तियेच, अपने द्वारा उपार्जित पुण्य से तीन गतियों (नरक, तिथंच और राम (बलभद्र ) हैं वे ऊर्ध्व गतिवाले और सुख के स्वामी हैं, जितने केशव (नारायण) हैं, वे नरकगामी हैं। मनुष्य) में उत्पन्न नहीं होते, एक पल्य के बराबर जीकर स्वर्ग प्राप्त करते हैं ॥१०॥
घत्ता-जो यम की तरह प्रतिशत्रु हैं, (प्रति नारायण) और स्थूलकर नारायण नहीं हैं, वे नरक से
निकलकर हलधर और चक्रधर नहीं होते॥११॥ जो संख्यात आयु का जीवन धारण करनेवाले हैं और एक दूसरे को विदारित करते और मारते हैं ऐसे सरीसर्प पहले और दूसरे नरक में जाते हैं। पक्षी दु:ख की खान तीसरे बालुकाप्रभ नरक में जाते हैं । महोरग तीन कायिक ( अर्थात् पृथ्वी, जल और वनस्पतिकायिक) जीवों के लिए मनुष्यत्व विरुद्ध नहीं है, और चौथे नरक में जाते हैं। पशुओं को मारनेवाले सिंह पाँचवें नरक में जाते हैं। महिलाएँ दुःख से व्याप्त छठे तिर्यंचत्व भी नहीं, ऐसा जिनबुद्ध ने ज्ञात किया है । पृथ्वी, जल और प्रत्येक वनस्पति में देव च्युत होकर जन्म नरक तक जाती हैं। मच्छ और मनुष्य सातवें नरक तक जाते हैं। कोई छठे नरक से आकर मनुष्यत्व प्राप्त ले सकते हैं। ज्योतिषपर्यन्त तामसिक देवसमूह शलाकापुरुषत्व को प्राप्त नहीं कर सकता। अब मैं भीषण करता है। कोई पाँचवें नरक से आकर देशव्रत धारण करता है। कोई चौथे नरक से आकर निर्वेद को धारण नरकावास का कथन करता हूँ जो भीषण और नाना प्रकार के लाखों दुःखों को दिखानेवाला है।
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