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ममियाऽपरिमालियवनई हहामुहटलविया लोकालबटालिकालरंगाधर गामतिमिगलीएससकेपाललसावसा नष्पजनितिरियग्रहमाणुस लिंतिदकसहमतिमा विउद्विवणिचथंड हवाइविहंगणापुतहिमिवई अवहिसावें जिपमयदछह कालिंगालपुर जसणियर पयडियदेतपतिदहारह घिरइसलामलिजडिसज्ञड कपिलकेसपरमारणकरकट। जिहजिरतेमुगतिअप्पाणले तिहतिहत संसवठाण दादालासपुजाणचामश्अहवापानकम
इनमें प्रथम नरक का विस्तार एक लाख अस्सी हजार योजन है। फिर क्रमश: बत्तीस हजार, अट्ठाईस हजार, लाख, फिर पाँच कम एक लाख अर्थात् निन्यानवे हजार नौ सौ पंचानवे, और अन्तिम नरक के पाँच बिल चौबीस हजार, बीस हजार, सोलह हजार और आठ हजार योजन विस्तार है जो केवल ज्ञानियों द्वारा उपदिष्ट होते हैं। इनमें नारकीय जीव भस्त्राकार के होते हैं. सिंहों और हाथियों के रूपों का विदारण दिखाते हुए। है। इस प्रकार खर और पंकभाग (रत्नप्रभा नरक) का हजार अधिक एक लाख योजन पिण्डत्व (विस्तार) जहाँ राजाओं के मुख सब ओर से बन्द हैं, अधोमुख लटके हुए शरीरबाले । लोहे की कीलों और काँटों से है। प्रत्येक भूमिका असंख्य आयाम है, जिसे देव ने संक्षेप में कहा है। रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, भयंकर दुर्गन्धित और दुर्गम अन्धकार से भरे हुए। इनमें अत्यन्त कृष्ण लेश्या के कारण मनुष्य या तिथंच पंकप्रभा, धूमप्रभा, तम:प्रभी और भी अन्तिम तमतम:प्रभा है जिसमें नित्य नारकीयों का वध किया जाता है। उत्पन्न होते हैं। सहसा एक मुहूर्त में शरीर धारण करते हैं, जो हुंडक आकार बैक्रियक शरीर होता है। वहाँ इस प्रकार ये अत्यन्त सघन तमजाल से निबद्ध सात नरकभूमियाँ प्रसिद्ध हैं।
मिथ्यादृष्टियों का विभंगज्ञान होता है और जो जिनमत में दक्ष सम्यग्दृष्टि होते हैं उन्हें सम्यक् अवधिज्ञान स्वभाव घना-इन भृमियों के बिल स्वभाव से भयंकर होते हैं, सघन अन्धकारों के घर अगणित योजनों के से होता है। काले अंगारों के समूह के समान काले, दाँतों को प्रकट करनेवाले और ओठों को चबानेवाले, विस्तारवाले होते हैं ॥१२॥
अपनो भौंहे भयंकर करनेवाले और क्रोध से उद्धत, कपिल बालोंवाले और दूसरों को मारने में कठोर । जिस
प्रकार वे अपने बारे में सोचते हैं, उस प्रकार वह स्थान उनके लिए उत्पन्न हो जाता है। दाढ़ों से भयंकर इनके क्रमशः, तीस और फिर पच्चीस लाख और फिर दुःख देनेवाले पन्द्रह लाख, फिर दस लाख, तीन अपना मुँह फाड़ते हैं, अथवा पाप किसका क्या घात नहीं करता! For Private & Personal use only
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