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जिविसरुणि सदासीन हो श्महा पनुमरको विनपरं विड्णी लाजरायणिविहन तमुटुजेकस परिसरुदिन सोहम रुमिकृपाणं पुंडरीमतश्रयमायें ।। छ्त्रा। सिरिहिरिदिदि कति किति लकिणामा लियन देवा नवसति सवरसुदक्यका लिया। पोममहायोमहतिगिगनदं केस रिपुंडरिक जलपूरिखगिरिकंदरदरियर सुसुमहाणइडेणी स्थिर गंगासिंधुरो ! हिसंगाला राहियासमंधराश्लील हरिहरिकंतसी अमान्य पाणकंता विमोच्या कण कूलरुणयकूलाली स्त्रारतोया विकासाली एखन रुपियन चोद्दहसस्थिर वजराणियन सन्न रिविचरियन हाइहपंचमिंदर वडवेयह खटार कुलसुंदरता बरकारगिरिदा कुंडल रुजगिकार गिरि खेत्रतहिंकि, वडविहसिहरु इरियसिरहा जंतूदी वह वादिर रथ कई गण जाईसहावा कई पटमसुसं कापरुंदई ताई तिमलयपडिकंदई कम हितगुज कम्मोय लावेपवित्रं लवण समुह चालीस कालो जपते त्रिय इंजेदेसाई वडजेोयण रायमाणविसेसर संतिकलोय मिश्रावास था पुरिसईदोदोरह सहसहा वर्धमणहरगन्नई विगया हरणाई लिक किट ईधन लहरिया राई
निषेध पर्वत पर स्थित तिगिंच्छ सरोवर महापद्म नाम के सरोवर से दुगुना होता है। स्निग्ध नील नगराज पर स्थित केशरी सरोवर भी उतना ही बड़ा है। रमणीय रुक्मी पर्वत पर स्थित पुण्डरीक सरोवर उससे आधा है। घत्ता - श्री ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नाम की पुण्य क्रीड़ा करनेवाली देवियाँ सरोवरों में रहती हैं ॥ ५ ॥
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सुनो- पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ, केशरी, पुण्डरीक और महापुण्डरीक स्वच्छ सरोवर हैं। उनसे अपने जल से पहाड़ी गुफाओं और घाटियों को आपूरित करनेवाली महानदियाँ निकली हैं-गंगा, सिन्धु, लहरोंवाली रोहित, मन्थरगामिनी रोहितास्या, हरि, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, महाजलवाली नारी और नरकान्ता । स्वर्णकूला और रूप्यकूला तथा मत्स्यों से भरपूर रक्ता और रक्तोदा। ये चौदह नदियाँ कही गयी हैं। इनमें पाँच का गुणा करने पर सत्तर हो जाती हैं। ढाई द्वीप (जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और आधा पुष्करद्वीप) में पाँच
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मन्दराचल हैं जो विजयार्ध पर्वत और विद्याधरकुलों से सुन्दर हैं।
धत्ता-क्षेत्रों के अन्तर्गत वक्षार गिरीन्द्र, कुण्डल, रुचकगिरि और इष्वाकारगिरि हैं जो अपने विविध शिखरों पर श्री को धारण करते हैं ॥ ६ ॥
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जम्बूद्वीप के बाहर, अपने स्वभाव को नहीं छोड़नेवाले बहुत से अन्तद्वीप हैं। पहला सुसंकीर्ण, दूसरा रुन्द। वे शराव (सकोरे) के आकार के हैं, और उत्तम, मध्यम तथा जघन्य इन तीन भेदों से युक्त कर्मभूमि के भाव से (अपनी चेष्टा से फलादि का आहार ग्रहण करनेवाले) विभक्त हैं। लवण समुद्र में अड़तालीस और कालोद समुद्र में भी उतने ही देश हैं। सैकड़ों योजनों के मान से विशिष्ट कुभोगभूमियों के आवास वहाँ हैं । रति में अनुरक्त वहाँ दो-दो स्त्री-पुरुष हैं, भद्रस्वभाव और सुन्दर शरीरवाले, आभरण और वस्त्रों से रहित, काले सफेद-हरे और लाल ।
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