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णिसारखारघचमडसमजलूजाविसासियानाहरहोदरिसानिमममलिणु अरणीत डिरविमणिजाजला नक्कलिमंडलियंजाणिणानादिसिविदिसालगनिपुवान गुळेसुगुम्मर विधातणसापवसरुखसाहाधण्समुपसिहवाणासश्काउपसानयजलश्चासजश्या। पजनियरसङमयराविडमसाहारणोपत्रेयुकेवि साहारपाईसाहारणाग्राणापाणश्या हारणापत्रयङ्कपश्याया”हिंदणसिंदणाणहणशंगयाशवारहसहाससवकराईस डमाहंददाजिददाखंगड घाउहपरमाउसुस्सु णशेअदरत्रचिचितिमिलणतज्ञ असहासशाधवाइदहसहसासंजिवणसश्सामुडपरमेजिअश्यवरणउच्चु सबङजा वितामुडचा दादिकारिककिमिखन्नसख वक्ष्यमइलासियसखा तदिदगासिपिर पीलियाशेचउरिदियमवियमङराहावा परिवाडिएकिंपिणाणलवणु एटाडंडतिए सावडशरसगंधुण्यापुकासदानवीर एकेकरऽदिम्चङकाशइवज्ञापजनाउँपंचकमसहिए यबस्सनहपाणया तसिंहोतिएमपनर्णति महामणिविमलणाणयालापदिय समिमस । पिदाणिमणवाडायजेतवस्यसमिसिरकालावाणखेतिपावाप्रमाणामुदढगृढसावाया
वारुणी, क्षीर, खार, घृत, मधु आदि जल-जातियाँ कही जाती हैं। वज्र, बिजली, सूर्य और मणि को दूर से आयु सब जीवों की अन्तर्मुहूर्त मात्र कही गयी है। गण्डूपद, कुक्षी, कृमि, शम्बूक, शंख आदि दो इन्द्रिय जीवों धूम्र का प्रदर्शन करनेवाली आग समझो। उत्कलि (तिरछी बहनेवाली वायु), मण्डली (गोलाकार बहनेबाली को मैंने असंख्य कहा है। तीन इन्द्रिय वीरबहूटी, पिपीलिका आदि, चार इन्द्रिय जीव मच्छर और भ्रमर इत्यादि। वायु), गुंजा (गूंजनेवाली वायु), इस प्रकार दिशा-विदिशा के भेद से वायु कई प्रकार की होती है। गुच्छों, घत्ता-परम्परा से इनमें युक्ति से कुछ भी ज्ञानचेतना उत्पन्न होती है। स्पर्श, रस, गन्ध, दृष्टि, (श्रोत) गुल्मों, लताशरीरों, पों में, वृक्ष-शाखाओं आदि में शुद्ध वनस्पतिकाय जीव उत्पन्न होते हैं, लोक में ऐसा इनमें से एक-एक इन्द्रिय पर चढ़ती है ॥११॥ यतिवर कहते हैं। ये पर्याप्तक, अपर्याप्तक तथा सूक्ष्म और स्थावर होते हैं। कोई वनस्पतिकायिक जीव साधारण ।
१२ और प्रत्येक भी होते हैं। साधारण प्रकार के वनस्पति जीवों का श्वासोच्छ्वास और आहार साधारण होता दो इन्द्रिय जीव के पर्याप्तक अवस्था में छह प्राण होते हैं, तीन इन्द्रिय जीव के पर्याप्तक अवस्था में सात है और प्रत्येक जीवों का अलग-अलग होता है जो छेदन भेदन और निधन को प्राप्त होते हैं। सूक्ष्म प्राण होते हैं और अपर्याप्तक अवस्था में पाँच प्राण होते हैं, चार इन्द्रिय जीव के पर्याप्तक अवस्था में आठ प्राण पृथ्वीकायिक जीवों की दस हजार; खर पृथ्वीकायिक जीवों की बीस हजार वर्ष आयु है। जलकाविक जीवों होते हैं, और अपर्याप्तक अवस्था में छह प्राण होते हैं, उनके लिए इस प्रकार विमल ज्ञानवाले महामुनि कहते की आयु सात हजार वर्ष, अग्निकायिक जीवों की तीन दिन, वायुकायिक जीवों की तीन हजार वर्ष, हैं। पाँच इन्द्रिय जीव संज्ञी-असंज्ञी दोनों होते हैं, जो मन से रहित हैं वे निश्चितरूप से असंजी होते हैं, वे शिक्षा वनस्पतिकायिक जीवों की दस हजार वर्ष आयु होती है। यह परम आयु कही गयी। अत्यन्त निकृष्ट या जघन्य और बातचीत ग्रहण नहीं कर पाते, अज्ञान के आच्छादन के कारण उनका मुढभाव दृढ़ होता है। For Private & Personal use only
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