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श्यनाजायविमिलियउसहयणपाडवीताणिगंतचौरदिवश्वणि तोसियफणिपरामरेजी वाजावणामवयसेयतब कहाजिणवोळासस्वासवजाखडलेयहाँति तसलवसक संयरिणमति चनगसिलकाणिहिलमति अपामदेहरागमति वियलिंदियसमलिंदिया अपना एकैदियलासियपंचूलेया श्राहारसगरिदियमणादाणासासापरमाणुवाद का रपणिवत्रणसमल तपजनितिलमातिएछ तिनविपरमेसेंपनच अहमणठाश्यतामडल सिंदणाणसुतिसुखरेख ददवरिससदासईचसश्तर परमेनिसीससायरसमाईमपुण्य तिपिपलिउवमा इंदिरचनारिदाति विद्यालदिामुपवर्जिकहति ताजाक्सपियंच करप समिउपजताचक्रधरण ययदिपजातिय तेजतिथपजताअपमा पजनहालमाइक यखपाल जगेसूचड़ोसियमनत्यालाघना जगलिडनिरिथहमाणबईसरणस्यहबिउबिट आहारशेयकासविमुणि कम्यतेउसयलडविथिडणवशतिरिखदवंतिडविदत्तसमावस्या वरपंचलेयया मुहवाबाउत्तयवावियवद्धविदहर्यिकाबधारीलामसुरियकरजलसइकला वापरिधाविश्धयसठाणसाव तोरणतरुवेश्यमिरित्रलेसासुरहरवयसंरखामष्ट्रिय लेस पाणवि
इनके द्वारा जिनका कथन नहीं होता वे अपर्याप्तक जीव के रूप में जाने जाते हैं। पर्याप्तक जीव के लिए एक तब निकलती हुई धीर दिव्य ध्वनि से नाग, नर, अमर को सन्तुष्ट करनेवाले जिनवर जीव-अजीव नाम क्षण का समय लगता है। विश्व में सभी पर्याप्तियों में एक अन्तर्मुहूर्त काल लगता है। से भेदवाले तत्त्वों का कथन करते हैं-सभव और अभव (जन्मा और अजन्मा) जीव दो प्रकार के होते हैं। घत्ता-तिर्यंच और मनुष्यों का औदारिक शरीर होता है, देव और नारकियों का वैक्रियक शरीर। इनमें सभी जीव अपने कर्म के अनुसार परिणमन करते हैं । चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते हैं। एक- आहारक शरीर, तैजस और कार्मण शरीर सभी के होते हैं ॥९॥ दूसरे के शरीर से अनुराग करते हैं । विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय अनेक होते हैं । एकेन्द्रिय के पाँच भेद होते हैं, जो कारण रचना करने में समर्थ होता है उसे पर्याप्ति कहते हैं। परमेश्वर जिनने उसे छह प्रकार का कहा है। पर्याप्ति के पूर्व होने का काल एक अन्तर्मुहूर्त है। जिस प्रकार नारकियों में उसी प्रकार देवों में (जघन्य तिथंच दो प्रकार के होते हैं-त्रस और स्थावर। स्थावर पाँच प्रकार के होते हैं-पृथ्वीकायिक, आयु के रूप में) जीव दस हजार वर्ष जीवित रहता है। उत्कृष्ट आयु तैंतीस सागर प्रमाण है और मनुष्यों जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक। जो क्रमश: मसूर, जल की बूंद, सूइयों का में तीन पल्य बराबर आयु होती है। एकेन्द्रिय जीवों के चार पर्याप्तियाँ हैं और विकलेन्द्रिय जीवों के पाँच समूह और उड़ती हुई ध्वज के आकार के होते हैं। तोरण, वृक्षवेदिका, गिरितल, देवविमान, आठ प्रकार
इन्द्रियाँ कही जाती हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के पाँच पर्याप्तियाँ हैं और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के छह। और की भूमियों में नाना प्रकार के Jain Education International For Private & Personal use only
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