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हसासरसरिसरसु पम्पारदक्षिणवरसहियलेसाश्चवरसुविवकळतं तरसु बसतपूरिह यणालय असरसरसानायासरस एयाणकमणनिहाइवामुखलेणणारिज श्वानुयासिहासिनियखणेवखलेशडविहविमहियाकरपववपाजाश्ताउसकिप अगाधना करगाहपाहरियसपायलिय परस्थवरविसरिख रहीमहिकायकमन्च
इससेवागण धरादिनाथ कावाणासुर्णि करिताजावा निघनिवाध्या ति॥
महि पंचवममञ्चकारियाडवज्ञा कचणत अवमाणिरूपयखरसुदईयासिमाबारुरावा
समुद्रों, नदियों, सरोवरों, जिनवर भूमियों में और भी दूसरे-दूसरे क्षेत्रों में लोकान्त तक स्थित आकाशतल में, अति सरस रस और जल के आशयों में इनका एक क्रम से निवास होता है। बालुका (रेत) खरजल से भी नहीं भिदती, और जो कोमल मिट्टी सींचने पर जल्दी बंध जाती है। इस प्रकार दो प्रकार की मिट्टी पाँच रंग की होती है, और दूसरे से मिलने पर दूसरे रंग की हो जाती है।
घत्ता-काली, लाल, हरी, पौली, सफेद और भी धूसरित (मटमैली) । इस प्रकार पाँच पृथ्वीकाय की मृदु धरती के पाँच रंगों का मैंने कथन किया ॥१०॥
११ स्वर्ण, ताम्र, मणि और चाँदी आदि खर पृथ्वियाँ कही जाती हैं।
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