________________
रममुकुंकुचिययुरुङजाश्तलाबजायचऊमन्ननाउ धादिंकहिमिकहकर ग्राम/पिहवियवाहकामहरिह डहोवरमगाशहणेवाणिहातापिचाणपक्केजर जलजलण विसविसहरपाजअणिदल पश्ससरियणनियमजिणासुरासुकस खूदगारटा गहणहयरणेउवसमतिकमकलहखलाणाडवाजयवश्सवणवमरखा। शायणअसरामरयमसियासगरूरकसदधगाय गदण्ट्यरणमसियाका चरण इतरगढ़साविगणयमार्पचण्डदाविराईएयरडसिंगचाया उझियतामा किरणियासासापचयलणमिक चठकमिपरियरिमडतजियकु वारदवाहा। ढकाटियाशगाश्वहविसवियारिमाशंगमहवठासालबजासाडुमावश्कलराजर्णिया तासाजोकामधणसविसधाम जैताडविघलिठमाइदामु डहरवयसाधुरग्नुचावाया पवनियासिकदहणवेरवि पितरविपराश्टणाणतारुवासमिअसाथहामूलिधारुजलाय उसवाडडलघु जाधवलधवलचंदहोमहायु नहोवसदहाकयपणिवायलाउणियाणलएणि सपसरदराजाघनाक्यपंजलियरूपाणवनसिहासनिदरियवियसियवाणु संसारडरकणिक
जो विपरीत मुख हैं वे कुगुरुओं के पास जाते हैं। हे त्रैलोक्य पिता, तुम मेरे पिता हो। धन्यों के द्वारा तुम जिसके (मिथ्यादर्शन-ज्ञान और चारित्र) स्कन्ध कुटी और मस्तक हैं, पाँच महाव्रत अथवा एक अहिंसावत किसी प्रकार ज्ञात हो? दुष्ट आठ कर्मों का नाश करनेवाले तथा दुष्ट उपसर्गों को नाश करने में एकनिष्ठ हे जिसका सिर है, चारों ओर से घिरा हुआ जो वहीं स्थित है, बारह अंग और चौदह पूर्व, जिसका ढेक्कार श्रेष्ठ परम जिन
शब्द है, विद्वानों के द्वारा विचारित, उत्तम क्षमादि जिसके अंग हैं। चौरासी लाख योनियाँ जिसके रोम हैं ऐसे पत्ता-सिंह, गज, जल, अग्नि, विष, विषधर, रोग, बेड़ियाँ और कलह करनेवाले दुष्ट तुम्हारी याद उसके लिए दुष्ट गोपति समूह उत्पन्न हो गया। जो कामधेनु है, जिसके सुधाम की सेवा की है, जिसने मोहरूपी करने से शान्त हो जाते हैं॥७॥
रस्सी तोड़कर फेंक दी है। और जो दुर्धर ब्रतभार के धुराग्र को धारण कर, जो प्रवर्तित नहीं हुआ। ऐसे तीर्थ पथपर चलकर और पार कर ज्ञान के तीर पर पहुँचा है, और जो धीर अशोक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा
है, जिसने संसार के अलंध्य पथ को पार कर लिया है, जो धवल, धवलसमूह में महाआदरणीय है उसके कुबेर, असुरेन्द्र, असुर और अमरों से प्रशंसित, बृहस्पति, शुक्र, बुध, मंगल आदि ग्रहों और नभचरों प्रति प्रणतभाव प्रदर्शित करते हुए भरतराज अपने कोठे में बैठ गया। द्वारा प्रणम्य आपकी जय हो। तेरहगति भावनाएँ (पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ) जिसके घत्ता-हाथों की अंजलि जोड़ते हुए, सिर से प्रणाम करते हुए तथा भक्ति और हर्ष से प्रफुल्लमुख भरत
चरण हैं, प्रभा से दीप्त पाँच ज्ञान जिसके नेत्र हैं, सम्यक्त्वादि ग्यारह गुणस्थान जिसके सींग हैं, तीन शल्य, संसार दुःख से विरक्त भव्यजनों को देखकर उनमें जा मिला॥८॥ Jain Education International For Private & Personal use only
___www.ja 185ng