________________
यजमायुरिसपरजणणामि रिसिसंसयहिंसाधमालासि जयमाहवतियणमाहदेस मकसूयण स्थिमावससायलायाणज्यपमहसागोवद्दणकेसवपरमहंसजगसाकसम्आरायचा हामारण्याहोकहिकसेवा केसवतसवजेयपतिजडपावण्डिरउखवसाताजयकासवकासवा विधिमम्मि गरेतरूचित्रणिराङजमिधला अमायणकथासणचंदरदिजावमहामारुवसलि लाग्रहगमसरजयसवल पकालियकलिमलकलिलाण्डव जयजयसिहनुहसायणिास गनकमगाणासणा जयवपकठविहदामायापखाश्वासणा ताणामाश्यसिइजाजाश उहदेवअवान्तावाई ईदचंदेरयाहिवाहणामहालाकउलउकण मश्ववविहीण हिंधारिसद्धिविश्वासिमऊंचारिसहिंताएददेपमुजसालयहि कश्चम्पानवालदिा एकदिखणेमरदहोकहियवन मुजरिमझिमहिवश्यकन्न सयरायखळुधियपाजापापम हिचलनुाण गणियदेखनुपालव्यणु आठहसालण्वस्थकरयप्पापप्तडारी सुमधाबजामजणादवसंत ताराप्रवरदिमिपारहिं पणविउणिवरुसिकसकर, हिं पुणचिंतिधकिंजायमिरा किंतणयड्दरियारिला महापणिम्मकसेग्राकिंवदा। मिमुणियतरंयुधियाणसुरखकलवच पहरणविदोशणालयस धसंपनपहश्खाक
२
पशुयज्ञों का नाश करनेवाले, ऋषियों के द्वारा प्रशंसनीय, अहिंसाधर्म का कथन करनेवाले यज्ञपुरुष! आपकी परवादियों के संस्कारों को नष्ट करनेवाले आपकी जय हो। हे देव, आपके जो-जो नाम हैं वे सब सफल जय हो। त्रिभुवन के माधवेश, माधव और मधुविशेष को दृषित करनेवाले मधुसूदन! आपकी जय हो। लोक नाम हैं। इन्द्र, चन्द्र और शेषनाग किसने तुम्हारे नामों का अन्त पाया? मति वैभव से रहित और अव्यत्पन्न का नियोजन करनेवाले परमहंस, गोवर्द्धन, केशव और परमहंस आपकी जय हो। विश्व में वह केशव है. हम जैसे लोगों के द्वारा तुम्हारी स्तुति कैसे हो सकती है? तब कंचुकी धर्म और आयुधों के रक्षकों ने एक जो रागवाला है, तुम विरागी के केशवत्व कैसे हो सकता है ? विश्व में शव कौन है, शव वे हैं जो तुम्हारा ही क्षण में भरत से यह बात कही, "हे राजन्, आप एकछत्र धरती का उपभोग करें। परमेष्ठी ऋषभ को उपहास करते हैं। जो जड़ और पापशरीर हैं वे रौरव नरक में रहते हैं। हे कासव! तुम्हारी जय हो, तुम में सचराचर पदार्थों को जाननेवाला अनन्त केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। रानी को खिले हुए मुखबाला पुत्र हुआ मृतक का आचार (शबविधि) कैसा? जिसके चित्त में निरन्तर निरोध है।
है, और आयुधशाला में श्रेष्ठ चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है। हे आदरणीय, आप पुण्यवान् हैं जिसके पिता अरहन्त घत्ता-हे गगन, अग्नि, चन्द्र, रवि, मेघ, मही, मारुत, सलिल आपकी जय हो । सबक कलियुग के मल सन्त हैं।" तब राजा भरत और दूसरे मनुष्यों ने अपने सिरों से हाथ लगाते हुए जिनवर को प्रणाम किया। और पाप को प्रक्षालित करनेवाले अष्टांग महेश्वर, आपकी जय हो॥५॥
फिर उसने सोचा कि पहले मैं क्या देखें? दृप्त शत्रुओं का नाश करनेवाला चक्र देखें या पुत्र का मुख ! या
मध्यस्थ स्वच्छ परिग्रह-शून्य शुद्ध-अन्तरंग मुनि की बन्दना करूँ! धर्म से ही देवत्व, कलत्र, पुत्र और शत्रुओं शुद्ध, बुद्ध, शुद्धोदन, सुगत और कुमार्ग का नाश करनेवाले आपकी जय हो। वैकुण्ठ, विष्णु, दामोदर, का नाश करनेवाला अस्त्र उत्पन्न होता है। धर्म से ही पृथ्वी का राज्य होता है।
-
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jan183.org