________________
जग
यंवरम
अणाई श्रमाणे मोका होचो हटा दिगोन, विमुकंधयारो गावा तो असंग रंगो जहाजायलिंगो ब्रहाविहान सुहाउ वाउं हा विणासो महागगिवास अतावोवो इमादेवदेवो को विनसमा पोसार दणिज्ञा इमोजणेा परामकगामी इमोमासामा सुराहिंदपूर इमोपत्र गुरुगुरुमापुडू मोपवदिवस पाहारणिमित्र रमईसमग्गपयासन्न ॥ पिपराडिदाणा इंदितिलाया ताईइमेणर्लिति परिमुक कामलामा कमलेऽजो कामघळल मिले जो लोग मंचयज्ञायलाई सलवाई गण्डलामा ५ रमाई गाइदेहिद हित्रिपघोस जोधपण अप्पापास दिनुलाईदिखा जोपुहिममाश सत्तावस अवसपलम्गा पावयम संसार होला हरजी होवळ हिंदंडिम अप्पाठपुरुह क्षिपासंडिज डक्सर परियहाराणा सूईमुहणिवडति श्रवाणा जेलिंतात विड विडदेता। जाणड किंगुणहिमहंता, पञ्चरणावणपञ्चरुतारण श्रवसक पशु सवयचमार जामुडावा रंतुपरिग्गड सर कमाइदियणिमाड धम्मालापाउओलावर अपवित्राणियकाराच १८
अमानी, अमोही, अक्रोधी, अलोभी, अच्छेद्य, अभेद्य, अनेक होकर भी एक अन्धकार से विमुक्त, कामदेव के विध्वंसक, पवित्र, महान्, अनन्त, अरहन्त, असंग, अभंग, दिगम्बर, बुधों के विधाता, सुखों के साधन, पापों के नाशक, तेजों के निवास, क्रोधादि भावों से शून्य, पीड़ाहीन, ये देवदेव हैं। कृतार्थ, विवस्त्र, समर्थ और प्रशस्त, सदा बन्दनीय ये पूज्यनीय हैं। श्रेष्ठ मोक्षगामी ये मेरे स्वामी हैं। देवेन्द्र और अहीन्द्र के द्वारा पूज्य यह पात्रभूत (योग्य पात्र) हैं।
घत्ता – विश्वगुरु, गुरुजनों के पूज्य, मौनव्रती, दिशारूपी वस्त्र धारण करनेवाले, यतिमार्ग को प्रकाशित करनेवाले यह आहार के निमित्त घूम रहे हैं ॥ ६ ॥
७
लोग उन्हें वस्त्र, मणि और स्वर्ण का दान देते हैं, परन्तु कामभोगों से मुक्त ये उन्हें नहीं लेते। जो काम
Jain Education International
से ग्रस्त है वह कन्या लेता है, भूमि वह लेता है कि जो लोभ से ग्रस्त हैं, भवन सहित खाट और शय्यातल वह ग्रहण करता है जो रतिक्रीड़ा को मानता है। गाय दो गाय दो ऐसा वह कहता है जो घी से अपने को पोषित करता है। धन वह लेता है जो इन्द्रियों की पूजा करता है। मांस वह खाता है जो अपनी चर्बी बढ़ाना चाहता है। ब्राह्मण और तपस्वी अपने व्यसनों से ही नष्ट हो गये और पापकर्मा वे संसार में फँस गये। दुर्धर जीभ और उपस्थ से पाखण्डी स्वयं को और दूसरों को नष्ट कर दण्डित हुए। पापों के भार की वृद्धि से क्षीण अज्ञानी जन्ममुख (संसार) में पड़ते हैं। जो लेते हैं वे विट और जो देते हैं वे विट। हम नहीं जानते, वे किन गुणों से महान हैं। पत्थर की नाव पत्थर को नहीं तार सकती, अवश्य ही कुपात्र संसारसमुद्र में मारेगा। जिसके अब्रह्मचर्य, आरम्भ और परिग्रह है और जिससे कभी इन्द्रिय-निग्रह नहीं सटता, धर्म का आभास देनेवाला पाप जिसे अच्छा लगता है, और भी दूसरे अज्ञानियों से कराता है,
For Private & Personal Use Only
www.jain155.org