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मंडवमझावेरुल्लिएहिंसमारि सोलह पयठवणेहिं पीलुसु हाइणिरा रिउ ॥ १२६ चउदिता सुकिला दविणारा जरकसुरादिना विसिरिधम्मचक्र वरुरिमवाप्स् हौउ प्यार के उपरिमिठे पयरियासरि स्यारहंग इगोघारिदिं धारणा ससिचय दैरिणा रिहि नरवरदामयतणुक सोदध्याहिंगलिखमल पंकर्हि पृणुवितिता रुरखडप उताप्यरिसिंहासनड अंचल चामासरघडियर विमल समतलमणिजडियन। मुरायणि मादी दर दिवहिं सहश्लड कजे क्रेाणपवहिं छत्रशतिमितापइरियई णिम्मला इणादही चरियई दिसिगय थंडर कर णिउरुंबई तिमिविणा व सस दरविंद लामंडलुमंडलु । लापुढे अश्यासंकेपिसझाडे पिपासयदहंसदिहिहे सरपटणपरमेहिदे ग्राफ थनादिपसादिन जिण मणिग्गउराठ वराहि केकेल्लि विपत्रवसो दिल मतको तमिल रमि मञ्जन, जिहजिद देवडं इंडदिव निइतिहधम्मजलहिणंगाइ ॥ घोड दिसणगारे पण वहतिङवापाड जेंमुझसंसारें। अविरलकंद कुमंदार पंक इं सरसलसिंडवारकणिशास्वपयाई जिहजिकुसुम श्यडियइंगया है। तिहतिह करसरणि
धत्ता- उनके ऊपर वैदूर्यमणियों से निर्मित मण्डप का मध्यभाग है, सोलह पद स्थापनाओं के द्वारा जिसका पीठ अत्यन्त शोभित है ॥ २६ ॥
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उसके ऊपर चारों दिशाओं में कल्याण और धन में श्रेष्ठ तथा श्री और धर्मचक्र को धारण करनेवाले यक्ष और इन्द्र थे। उसके ऊपर एक और हिरण्यपीठ था, अपनी शोभा को प्रकट करता हुआ वह आठ ध्वजों से घिरा हुआ। चक्रवाक, हाथी, बैल, कमल, शोभा वस्त्र और सिंह, मयूर और पुष्पमालाओं से चिह्नित ध्वजों से जो शोभित है । फिर भी तीन किनारों से (एक के ऊपर एक) पीठ निर्मित है। उसके ऊपर सुन्दर सिंहासन हैं। स्वर्ण और चाँदी से निर्मित और समन्तभद्रमणि से जड़ा हुआ। जिसकी यष्टि (हाथ टेकने की लकड़ी) मरकत मणियों से निर्मित स्फटिक मणियों की गाँठों से शोभित हैं। उसके ऊपर तीन छत्र उठे हुए थे जो नाभेय के चरित के समान सुन्दर थे। दिग्गजों के समान सफेद किरण-समूहोंवाले वे चन्द्रबिम्ब की तरह शोभित
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हैं। भामण्डल मानो सूर्य का मण्डल है जो मानो राहु से अत्यन्त भयभीत होकर दुर्दर्शनीयों की दृष्टि का नाश करनेवाले परमेष्ठी की शरण में आ गया। अथवा जो लाल फूलों के गुच्छों से प्रसाधित, तथा जिनके मन से निकले हुए राग के समान शोभित है। जिसमें प्रसन्न पक्षियुग्म हैं, ऐसे पल्लवों से शोभित क्रीड़ा करते हुए अशोक वृक्ष के समान । जैसे-जैसे देव के लिए दुन्दुभि बजती है, वैसे वैसे मानो धर्मरूपी समुद्र गरजता है ।
घत्ता—मानो वह गम्भीर दुन्दुभि के स्वर से इस प्रकार घोषित करता है कि यदि संसार से मुक्त होना चाहते हो तो त्रिभुवननाथ को प्रणाम करो ।। २७ ।।
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अविरल कुन्द, कुटक, मन्दार, कमल, भ्रमरसहित सिन्दुवार, कणिकार ( कनेर) और चंपकपुष्प जैसेजैसे आकाश से गिरते हैं वैसे-वैसे कामदेव के हाथ से तीर गिरने लगे। For Private & Personal Use Only
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