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महापाजिणकामकालिया समसक्कदेहालिायुपुखरामररामारमिाशंचलणार दणवणाइपरिसमिथककेबाचपलसन्नयलहिसकसहिंसाहारहिसरलविणेव
विमलईसरिसरप्पलिणकालागिखिकेलासवणाचगानरातिसालपरिमाण रियउपादालिमहलमणिविप्फुरियउ तिक्तअसोग्यसायवर्णतरे तदोपधिमाउवद्यारि दिसतोकोहमाहमनमार्णचन्नमसीहासगहतवाडता अक्तियणमदेवक्यमुजठा पिडामणिरंगमणिरुणिखडा समाश्ववमान पुणरविचन्डवारखणवच्छ पुणदिसिदिसिदहधयसरसंथाथियगयणयललग्गपवपुडुयमालावळमोरकमलका दिदसगरुटहरिविसकरिचकहिं खासिययधियपदकाही अनरूसनसउण्केको राघवापदाकातिलाय माहणधालतमऊसुममालधतासुकरमाउडजेंजिलाते। Rधहलाकहस्वकिंकिणीणधारताछोलमाणा अभिहसकसमाविणवहामिसुमवाणा
देवदेवमामडलसजयकुसुमकरालहोकरुणकरायजोर्चवस्तवचरणणसावश्थव रविधुतासुधुआवजासिदिवसकयाइणलशासिहिजयंतिसावपळजाणिवकम
मानो जिनके कर्म से काली वह मुक्त देह घूम रही हो। फिर विद्याधरों और देवों की स्त्रियाँ जिनमें रमण की प्रभा से प्रचुर एक-एक पर एक सौ आठ ध्वज हैं। करती हैं ऐसे चार नन्दन वन रच दिये गये। प्रत्येक वन में नदी और सरोवर के किनारे हैं, क्रीड़ा पर्वत श्रेष्ठों घत्ता-आकाश में उड़ती हुई कुसुममाला ध्वजा त्रिलोक में क्या किसी दूसरे के लिए सोह सकती है, पर केलीभवन हैं। चार गोपुर और तीन परकोटों से घिरा हुआ तोन मेखलाओवाला तथा मणियों से चमकता केवल उसके लिए सोह सकती है कि जिसने कामदेव को जीत लिया है ।। २४॥ हुआ पीठ है । वहाँ अशोकवन के भीतर अशोक हैं, चारों दिशाओं में वहाँ प्रतिमाएँ हैं। क्रोध, मोह, मद एवं मान से रहित जो सिंहासन और तीन छत्रों से युक्त हैं। जिनकी अनेक देवों से पूजा की गयी है, जिन्होंने मानो बह ध्वज किकिणियों के आन्दोलित घोष से कहता है कि मैं वहाँ कुसुमसहित होकर भी कुसुमबाण काम को नष्ट कर दिया है. और जो पापरहित हैं। सन्ध्या के समान स्वर्णकान्ति से निर्मित, फिर भी चार (कामदेव) नहीं हूँ। हे देवदेव, मुझ पर क्रोध मत कीजिए। कुसुमों से कराल मुझपर करुणा करें, जो अम्बर द्वारवालो बनदेवियाँ हैं। फिर दिशा-दिशा में देवताओं से संस्तुत, आकाश को छूती हुई, हवा से उड़ती हुई (वस्त्र) तपश्चरण में अच्छा नहीं लगता, उसके लिए निश्चित रूप से वस्त्रध्वज आता है; जो स्त्रीवेष को दस ध्वजाएँ स्थित हैं। माला, वस्त्र, मोर, कमलों, हंस, गरुड़, हरि, वृषभ, गज और चक्रों से भूषित पटध्वजों कभी भी नहीं चाहते वह मयूरपताका अवश्य देखता है;
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