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एण हिरण्णरइयउ रुइरिद्धरणं जिणेण वयपरियरु बद्धउ । अप्पवेसु णं कामकडक्खहु गुरुपायारु पारु णं दुक्खहु । जहिं चउगोउराइं संविहियई जहिं बहुमंगलदव्वई णिहियइं। अठ्ठोत्तरसयसंखासद्दई
णव वि णिहाणइं हयदालिहइं। तहिं विंतर पडिहारसमत्था भीयरकुलिसगयासणिहत्था। पुणु पणिहिउ उहयम्मि विसालउ चउदिसु दो दो णाडयसालउ। ताउ तिभूमिउ णवरसजुत्तउ णाई पउत्तिउ सुकइपउत्तउ। बहुवज्जउ वड्रायरभूमिउ आयउ णं ओलग्गडं सामिउ । छत्ता- उहयदिसहिं कुहिणीहि पुणु वि कया वि ण मिडिय॥
दो दो दिण्णसधूव तहिं धूवहड परिट्ठिय॥२३॥
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हेला-दीसइ गयणमंडले णीलधूमरेहा।
अनेक वाद्यों से युक्त वैराग्यभूमियाँ थीं जो मानो स्वामी की सेवा के लिए आयी थीं।
घत्ता–मार्ग की दोनों दिशाओं में अपनी-अपनी धूप देनेवाले दो-दो धूपघट स्थित थे जो कभी भी समाप्त नहीं होते थे।॥२३॥
फिर विशाल प्राकार, स्वर्ण से रचित और कान्ति से युक्त जो ऐसा लगता था मानो जिन भगवान् ने अपने व्रतों का परिकर कस लिया हो। जो काम के कटाक्षों के लिए अप्रवेश्य था, और जो मानो दुखों का अन्त था। जहाँ चार गोपुर-द्वार बनाये गये थे, जहाँ अनेक मंगल द्रव्य रखे हुए थे। एक सौ आठ संख्या शब्दोंवाले तथा दारिद्र्य का अपहरण करनेवाली नौ निधियाँ। जहाँ भयंकर वज्र और गदाएँ हाथ में लिये हुए व्यन्तर देव प्रातिहार्य का काम करने में समर्थ थे। फिर मार्गों के दोनों ओर चारों दिशाओं में दो-दो विशाल नाटकशालाएँ थीं । जो नवरसों से युक्त तीन भूमियोंवाली थीं, सुकवियों के द्वारा कही गयी उक्तियों के समान।
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आकाशमण्डल में नीली धूमरेखा ऐसी दिखाई देती है
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