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गिदिदक्क बासराजानिरंतरसु घटायावर्षदिमानतर
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हो जयगएपडणकरेढोलावारवारजिषणाडेंजोछावना देहालयमणकुंड रसुपिजतनत
सोमवनराजानिक पियठ मय
रसुखउंडगाडिनको सरासणसा
स्वयंसिचुआपात्रा कमाण्जल
मनिभित्रिघटाया एणडाणया
दिमाथयाग्य।
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ताडहिरवा पत्तरियादिया वसाणताण यसुखरहिंतो
माङसाङदार होळा पंचवाष्पमाणिक्वविसिहा घर्षगणेसहारवरिहा रणदासश्ससिरविविवक्लिह कहर
युवराज के द्वारा हाथ पर ढोया गया और जिननाथ के द्वारा बार-बार देखा गया।
घत्ता-देहरूपी घर के मनरूपी कुण्ड में पिये गये रस के बारे में यह कहा गया कि कामदेव के धनुष का सार ध्यान की आग में होम दिया गया॥१०॥
तब नगाड़ों के शब्दों से दिशाओं के अन्त भर उठे। देवश्रेष्ठों ने कहा - "भो! बहुत अच्छा दान"। पाँच प्रकार के रत्नों से विशिष्ट धन की धारा उसके घर के आँगन में बरसी, जो मानो शशि और सूर्य के बिम्बों की आँखोंवाली
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