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व अवरासुरविलासिणा गहियक्सममालार्णवालासविणामयणसहसालाना अरकावि
सचदणदासशसामलिागणावश्यणघणतश्साहायपरविकुंकमर्षि सबदिसाश्वसिसम. अपळण्देवाणना अवरसदपाणणमणिवरमअवरमयरविधिसरिवारअरुमधारिणगमारक होसहि। हतकरताश्राव
थण्डड्डाणयुद्धपाणिहिमईि अव रसुसयदएणसुरसार अवरसहसमार
गिरिदरिमलविरहियअवविविज्ञा श्वाचवायुरहिपफुछियजावण इअवरसरसुतावाल गायवरल डतालालवायअवततिकतरू वाअवरपरमातळकरुपमसाप
माहियवदणार्दूि अक्षरकाडिहिचलमि गण्यापहि साहमादिसत्रावासहि साविपरिमितववासहि यवदेवर्सचलितनाव
वाली भूमि हो। एक और प्रस्वेदयुक्त शरीरवाली ऐसी लगती थी मानो गंगानदी हो। एक और हंस तथा मयूर एक दूसरी देवविलासिनी हाथ में कुसुममाला लिये हुए ऐसी ज्ञात होती है मानो कामदेव की सुन्दर छोटी- से सहित ऐसी लगती थी मानो गिरिघाटी हो। एक और मल से रहित, विद्या के समान थी। एक और खिली सी शस्त्रशाला हो। एक और स्त्री चन्दन सहित दिखाई देती है मानो मलयगिरि के तटबन्ध पर लगी हुई हुई जूही पुष्प की तरह सुरभित थी। एक और सरस और भावपूर्ण नृत्य करती है, एक और कूटतान में भरकर वनस्पति हो। एक दूसरी केशरपिण्ड से इस प्रकार मालूम होती है मानो बालसूर्य से युक्त पूर्व दिशा हो। एक गाती है। एक और वीणा वाद्यान्तर बजाती है, एक और परम-तीर्थकर का वर्णन करती है। इस प्रकार प्रसन्न और दूसरी दर्पण सहित ऐसी मालूम होती है मानो मुनिवर की मति हो। एक और दूसरी कामदेव के चिह्न और प्रसाधित मुखों और चंचल मृग नेत्रोंवाली सत्ताईस करोड़ अप्सराओं से घिरा हुआ सौधर्म्य इन्द्र, तथा से रति के समान जान पड़ती थी। अक्षत (चावल, जिसका कभी क्षय न हो) धारण करनेवाली कोई ऐसी चौबीस करोड़ अप्सराओं से घिरा हुआ ईशान इन्द्र चला। इस प्रकार जबतक देव चले, मालूम हो रही थी मानो मोक्ष की सखी हो। ऊँचे स्तनोंवाली कोई ऐसी मालूम होती थी मानो शुभधन (कलश)
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