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रपयाणिव रिकमयंकवरतापगदजकरकगंधामुदाण्याकिमरर्कियुरिसाविपिसायदास्लगह उदाहिकमारवि आगोवाउतथिडियामारवि दिकमालवणीयकमावि गायकमावि असुरखमारवि अाश्यावेतजसविमाण्ई पल्लावल्लिंझायणदाणवाछवा सदाणिय रापहि हरिणकलवहाउससिकरडयलणिहह मयचिखिल्लेलिनवादहला अज्ञवि। सामुदाश्तेणेयकालियंगो जिणजशाहलेणमालपारिकोणगाना कोविसषाशमगुर्कि पहेदायहिवाधुमहारउचिपजामहि को दिसणाईसाहक्किमवायहि जानसाडमिय बलोयहि कोविजण लश्यछमिलगाउ हेसहापरकवललगल काविसणकिंमूसउचाल हिमकमजावणणिहालहि काविसणभावादाहिविसहरू कहिणिणउलकरसह कलाकाविरुणाईलोसपियनचल्लहिचडरिझुगवाणामयलहि कोक्लिपाश्सकडि किंपश्य हिसरहमडसारयुमतासहि कोविसाध्यादेहिसमायूसठपसरणसङगह मोरेमो रुसवकाएं जाननअउसमठडलूर्ण कोदिसणाईचसापडूरे
विवरुपुर्किण्ठविद्यार। कोविणमास्यवड सरुमार्लजहिमेस्टजलहरतरुको क्लिणाईवालाहडल्ल पाया।
ऋक्ष, चन्द्र, तारा, ग्रह, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, महोग, किन्नर, किंपुरुष, पिशाच, भूत, गरुड़, दीपकुमार, कोई कहता है-"तुम हाथी को प्रेरित मत करो। यह सिंह है, मुँह क्या देखते हो"। कोई कहता है-"लो उदधिकुमार, अग्निवायु, तडित् और स्तनितकुमार, दिक्कुमार, स्वर्णकुमार, नागकुमार और असुरकुमार भी मैं यह हूँ। हंस का पक्ष बैल से नष्ट कर दिया है। कोई कहता है-"चूहे को क्यों चलाते हो, क्या मेरे आये। अपने-अपने विमानों से आते हुए आकाश में विमानों की रेलपेल मच गयी।
आते हुए बिलाव को नहीं देखते"। कोई कहता है-"विषधर को मत चलाओ, रक्तरंजित हाथवाले नकुल घत्ता-गजों द्वारा संघट्टित और सूंड से रगड़ा गया चन्द्रमा मद की कीचड़ से लिप्त हो गया, उसे मृगलांछन को नहीं देखते"। कोई कहता है-"तुम धीरे-धीरे चलो, रीछ। गवय से मत भिड़ो"। कोई कहता कहना गलत है॥१८॥
है-"भीड़ में प्रवेश मत करो। अपने शरभ से मेरे सारंग को पीड़ित मत करो।" कोई कहता है-"आओ हम अच्छी तरह चलें । तोते तोते के साथ चले। स्वपक्षीभूत मोर के साथ मोर, और उलूक के साथ उलूक"।
कोई कहता है-"वैश्वानर (आग) से दूर रहनेवाले वरुण को आगे बढ़ाओ, यहाँ विचार करने से क्या?"। आज भी इसीलिए वह काले अंग से शोभित है। जिनवर की यात्रा के फल से कौन मलिन व्यक्ति ऊँचा कोई कहता है- "हे पवन, इस समय तुम्हारा अवसर है, तुम मेरे मेघतरु को भग्न मत करो।" कोई कहता नहीं होता? कोई कहता है - "मग को पथ में क्यों लाते हो। क्या मेरे आते हुए बाघ को नहीं देखते?" है-'हे इन्द्र ! बोलो,
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