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अवकखंदसिकितावादस्वसहगवाममोहणिवणिकेउव णायवेलिरुहाउपायालुबास्त्राय ददाविरतवियाबुवाअवसवकवंदहिलकर असिवसणारेणयविमुकउमहिमाणिणिमुहश्चम डालत सायणलमियखगहिवतायत करमामायामिसणासम्मूहळयबुद्धशणाणाचा सरोहिापडयातणसवशा/हलालहिणंदावणमिणग्गाहरूकमले अासाणासिलायलोणम्मर
लेविसालाळगणवकणियारकसुमर यवमसुत्रध्यापलियकषियमा पाकिसोकसंसारविसिंहसारकायारू इकमझदल पश्यजिमणासुपचे
गाहरणचाहिंन्चारकासुदेहा, परमत्वसमामि बाथवटवत्तल
घणराणतणु गेमिसपराश्मूटकन हायस्कूटिकसि
पु तसिवसापिसाविजरजेणगान लाऊपरियूनाया नमापूज्यसितश्च ।
गवउपज्ञाश्यावगाङ्वारिखसुमन सडसम्मन्नणाणुसुदसणु अगरुघलयबाचाहायश्वसुविकसिगुणोड एमसामि ८२
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जो सहस्रबाहु की तरह करवृन्दों (करों तथा करौंदी वृक्षों) से व्याप्त था; जो तूर्य के समान ताल (वृक्ष और ताल) से, और सज्ज (सर्ज वृक्ष विशेष एवं षड्ज स्वर) से गीत के समान, और मह (वृक्ष और जबर्दस्ती उस नन्दनवन में वटवृक्ष के नीचे विशाल चट्टान पर बैठे हुए, नये कनेर की कुसुमरज के समान रंगवाले का युद्ध) से नृपति के भवन के समान शोभित था, जो नागबेल्लि (नागों की पंक्तियों और लता विशेषों) तथा पद्मासन में स्थित प्रभु सोचते हैं - "संसार में विशिष्ट सुख नहीं हैं, सुख के आकार में मैंने दुःख ही से पाताल की तरह; तथा सन्ध्या की तरह स्तयन्द दाविरउ (लाल चन्द्रमा दिखानेवाला, रक्तचन्दन देखा है। अक्षय का नाश करनेवाला यह नाट्य अच्छा नहीं है । गहनों से शरीर का भार बढ़ाता है, काम देह दिखानेवाला) था। जिसे अपशब्द के समान कविवृन्दों (कवि समूह, वानर समूह) ने छिपा रखा था। जो का संघर्षण और क्षय । गीत के बहाने मूर्ख जीव रोता है। इसलिए उसे शिवश्रेष्ठ की भावना करनी चाहिए तलवार के समान (सुनीर से मुक्त) नहीं था। महीरूपी भामिनी के मुख के समान जो मधु से लिप्त था, और कि जिससे यह जीव दुबारा जन्म न ले। वह अवगाह, वीर्य, सूक्ष्मत्व, समत्व, ज्ञान, दर्शन, अगुरुलघुत्व और रत्नों से सहित भुजंगों (साँपों एवं गुण्डों) से भुक्त था।
अव्याबाधत्व सिद्धों के इन आठ गुणों के समूह का ध्यान करते हैं। इस प्रकार स्वामी घत्ता-जो कुमुदों के आमोद के बहाने वह उद्यान जो कुछ कहता है, वह मानी नाना पक्षियों के स्वरों के द्वारा प्रभु का स्तोत्र कहता है ॥१४॥
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