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जमांतरावमालाला सामराई पहायसमा। सवासासदेसामुपायोपहाणं वराहारदाणालय संविण समापीतलम समादयसकंमतपि थके पुणतिणतंत्रदोहोणिस्तंडूदमभू पाणं पणार्यपुराण अवईश्वराश्अजाईनमाश
बंटवस्मरण।
जिन्होंने तुम्हें और भरत को धरती दी, और स्वयं नयी वृत्ति (मुनिवृत्ति) स्वीकार की, ऐसे वह त्रिलोक पितामह आये हैं।" यह सुनकर सोमप्रभ उठा और श्रेयांसकुमार के साथ निकला। तब तक हाथ आये हुए, मानो दिग्गज हो, सामने आते हुए जिनवर को देखा, मानो वसुधारूपी अंगना ने हाथ फैला दिया हो, मानो आकाशरूपी सरिता में कमलों के लिए कृताग्रह सूर्य हो, मानो भव भव का नाश करनेवाला विश्वरूपी भवन का खम्भा हो। स्वामी के स्नेह के भार से भरकर हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। लब्धप्रशंस सोमप्रभ और श्रेयांस ने उनकी प्रदक्षिणा कर, हर्षा श्रुरूपी ओसकणों से सिक्त नेत्ररूपी कमलों से उन्हें देखा।
घत्ता-अत्यन्त प्रसन्न मुख होकर वह बात करना छोड़ देता है। उनको देखकर वह पूर्वभव के स्नेह को जान लेता है॥५॥
जिन भगवान् को देखकर कुमार श्रेयांस ने लोक श्रेष्ठ अशेष, स्ववासी दशेश श्रीमती और वज्रजंघ के जन्मान्तर के अवतार को ज्ञात कर लिया। मुनियों के लिए जो मुख्य अनन्त पुण्य को करनेवाला उत्तम आहारदान दिया था और जिसमें इन्द्र आया था, उसके मन में यह बात स्थित हो गयी। उसने फिर कहा, "अहो, निश्चय ही मुझे ज्ञान हो गया है और मैंने प्राचीन वृत्तान्त जान लिया है। अजन्मा, अरागी, अप्रमेय, अमादी,
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