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शकशमिच्छामग्रोपाहर कुढ़ियवंटरिसासहिंसिव साडेसमावणविनाशिनादप्रवराजे मश्वशिठ सहायुगपंचर्डसकरपयाईजिणेसपअन्नई सीसिविवरजेपणापालिङ तजदामध्यूतुणिहालिउ माशापदेसचरिचालकिन सम्पाईसकहिंमिपासंकि इरुशिममा दप्पकदम्यहिं पाणचरिखसम्मतदिनादि हसिउसंदिवसासासाकर्दिसामयादिचउरासा लखाद उत्तमुपञ्चरामपणविज्ञाश्ययापासुनसायपदिलशाचवा कुझियवत्रकुसार दि युचवत्रणासतिहिंपनदिफलतिविध श्यसंदस्वाहासज्ञापहला मशिमुमझिमणाव हमेअहमपागाउनमनन्त्रमणदावादालानामा पिल्लाचा सविण खमविणाणय सहासचिए सालवाजिणपसणमारने सासारसवबियारत पहिशुपाहिंडावदायाला मझमण्यवाश्यदार मठलिमकसलधश्चवमसम अचतिविहपतगमचिन्तन णवंतठपरलायासवउसोपडियाहरूपंगणुपतराठाङलणचिषणविदासिरुलासाउबठा पिगनरवियनिवसरकचासतङधपजणु चरणबुत्रप्रवणुपपुषणमणु मणवयन
सुहियसहारण देश्लखडिगिदहासामा सकरायलाहाणसई दसजीविउचलर
किसी मिथ्यामार्ग में प्रविष्ट हुए उसे ऋषीश्वरों ने कुत्सित पात्र कहा है। शील और सम्यक्त्व से रहित अपात्र होता है, यह बात मैंने स्वयं देख ली है। नौ, पाँच और सात तत्वों का श्रद्धान करता हुआ, जिनेश्वर के द्वारा मध्यम से मध्यम, अधम से अधम फल जानना चाहिए। उत्तम दान से उत्तम भोग होता है। निर्लोभता, उक्त पदार्थों में विश्वास करता है, परन्तु जिसने थोड़े से भी थोड़े व्रत का पालन नहीं किया मैंने उसे जघन्य त्याग और भक्ति, क्षमा, विज्ञान और शुद्ध भक्ति इन गुणों से युक्त दाता (श्रेयांस) मध्याह्न (दोपहर) में द्वार पात्र के रूप में देखा है। मध्यम पात्र एकदेश चारित्र से शोभित होता है, और सम्यकदर्शन में कहीं भी शंका देखता है। हाथ जोड़े हुए, अत्यन्त अप्रमादी, तीन प्रकार के पात्रों को चित्त में सोचते हुए, गुणवान्, नहीं करता, जो दर्प सहित कामदेव को उखाड़नेवाले ज्ञान-दर्शन और चारित्र्य के विकल्पों, शाश्वत सुख परलोकासक्त वह वहाँ स्थित है, और आँगन में आये हुए उन्हें पड़गाहता है, 'ठहरिए' यह कहकर प्रणत का संचय करनेवाले चौरासी लाख शीलगुणों से भूषित हैं ऐसे इन उत्तम पात्र को प्रणाम करना चाहिए, इसके शिर वह बोलता है, और गौरवपूर्ण उच्च स्थान में उन्हें ठहराता है, वह स्तुति करता है, "सन्तों से लोक लिए प्राशुक भोजन देना चाहिए।
धन्य है।" चरण धोना, अचां और फिर प्रणमन करता है। मन-वचन और काय की शुद्धि से शुद्धासन देता घत्ता-कुपात्र को दिया गया दान कुभोग देता है। और अपात्र में दिया गया दान नष्ट हो जाता है, परन्तु है। जिनेन्द्र के शासन की याद करता हुआ अभयदान के साथ औषधि और शास्त्र देता है अपने जीवन को पात्र को दान देने से तीन प्रकार का फल होता है, यह सुन्दर कहा जाता है ।।७।।
चल और लघु मानकर।
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