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पर्यामराजायाम किंपिवितासहिसुश्रणधुकिंचपाउसाहहिला सकलदालुणिमुणेवि समिला अहियारिल कंच
वपदंडविही
गृहसंहिस्सा वालीदारामया गत्वाकायाम मनकथित
सोमवसराजाश्र यासतीर्थकराया गमनमणिकरिक नरामणकरिमन्युष आगतंग
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भी कुछ नहीं बोलते? हे भुवनबन्धु, अपने को क्यों सुखाते हैं ?
घत्ता-नगर में कलकल सुनकर राजा सोमप्रभ ने स्वर्णदण्ड है हाथ में जिसके, ऐसे अपने द्वारपाल से पूछा ॥४॥
तब प्रतिहार ने कहा, "भव का नाश करनेवाले जो लक्ष्मी के द्वारा कटाक्ष करने पर भी निर्विकार रहते हैं, इन्द्र ने सिर से प्रणाम कर जिन्हें मेरु पर स्थापित किया और स्वयं अभिषेक किया है, जिन्होंने नाना प्रकार के बुद्धिगम्य लोकजीवन कर्म प्रकाशित किये,
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