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निम्नानाति
साहसरसरणेगुणालजंगममंदोबारमियपी लालठाणालडाकलाबळमालिन सिहबिजलय
हमालएकालिन अायकरसषिवादर मागावललनपाराला तावमादिगणदारपत्र मनियादिनाथका हलणाराणरहिणिरंडहिनावमापाजणपयसम्म नहिंमकलयलजयजयसकाविरुण हारमाधुंजाजा
रंवलासहिपाइयजलियस्यकमिज कवस्त्रपाबालिंग
कहि काविलगाईसाभिमव्यकिड्ज पकवार विधानाहारमा
पछुतरूहे कोविरुणमेलघायाचाही सिवसनियत किणविदाबादचंडवारकर
स्केचितारतमजश्वगाहपश्यतउधारण DS दिधरुपंगणुसंपाहतानवलाउददेउपलोप्ल
शिपायानमणिहरिसुवहन्तिम पत्रचवतिताउ पणवतिलमजएमजणहरसंजाल पन्नितलासपुदिपदाल रहा हिणाहलतपुनवयरगाडे चंगउचलिउहभाहरणावश्सहेपट्टेमुससम्ममुग्नउजहिसाबूण जेझाग वालावियला
की भक्ति अच्छी नहीं लगती। जिस प्रकार चन्द्रमा नक्षत्र-नक्षत्र में विचरण करता है, विश्वपति भी घर-घर चन्द्र, रवि, सुभट, सिंह, सरोवर, समुद्र और वृषभ के गुणों से युक्त सचल मन्दराचल की तरह अपनी में प्रवेश करते हुए गृहिणी के गृह प्रांगण में आते हैं, तब उसने तात या भाई के समान देव को देखा, मन गति से महागज का उपहास करता हुआ, नीली जटाओं के समूह से व्याप्त, मेघमालाओं से श्याम पर्वत की में सन्तोष धारण करते हुए वह बाहर आया। तात को प्रणाम करते हुए इस प्रकार कहता है-"स्नानघर में तरह, ऐरावत की सूंड के समान बाहुबाला, लटकते हुए प्रारोहों से युक्त वटवृक्ष के समान बह, तब दूसरे स्नान करिए, धोती-तेल और आसन रख दिया गया है, हे स्वामी ! स्नान कीजिए और शरीर के उपकरण दिन नगर में प्रविष्ट हुए। नर-नारियों ने निरंजन उन्हें देखा। दौड़ते हुए जनपद के सम्मर्दन और जय-जय लीजिए सुन्दर वस्त्र, स्वर्ण के आभरण। आसनपट्ट पर बैठिए, और सरस सामग्री से युक्त भोजन कीजिए, शब्द से कलकल होने लगा। कोई कहता है-यहाँ देखिए जहाँ मैं अंजलि बाँधे हुए खड़ा हूँ। कोई कहता यह तुम्हारे योग्य है, बुलवाये जाने पर है-स्वामी, दया कीजिए, एक बार प्रत्युत्तर दे दीजिए। कोई कहता है-मेरे घर आइए, हे स्वामी ! क्या भृत्य
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