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इयंदूइंसामण सायणसुरहियसीमल्झसिंगारवरजलशंसायणगहिणूपंथमिणि हिऊण पाहासतदेति वालाण्यामंतिपयसकाईदेवेगवछोर कडिसकर मणिहार मजार कंकणकरलइहरमंडलईगलियावलवमा नवणेतिददस्य अपकुलीगाउमर झम्मिखापाठलायणपुप्पा हायतिकमाउ परमगामायणगाववपणा
पायापरियणवासनाचमण्यवाई ससिखंडपड विद्यामंदिरअणेसमा प्पति अपहासवि लामयणमयबाह लामाजलवाहलातरुणामहराह सातबसिरीया हालादेवदेवस सोपरमपरमेस णिणगवसण हिदेहसाण पालयसि किसमसिणारा इससि पाउरमसिश्यलणविज्ञहिचड्यासजेहिवालाविजवि पडचवणउतशेजा। परणिहियणियक्ति महिनादविहखाना। हिंडजामजिगिड चरियामागपहन तासबस णिवण गयउत्सादिहवाशाहली पलकासिएमसलतणेनपणास्याणविरामजामपसेर पस्त्रयपानाससिपहाणुजमिमणा लवाणवमिणा णिसायगदिवायरो करीसरासराव । रामदप सुरछिन बलुहरामवादिन सवाढजितसंगारिकपल्याणकरा सकमबर्वधराम
आर्यों ने उन्हें बुलवाना चाहा परन्तु स्वामी तब भी नहीं बोलते। घर से अपने चित्त को हटानेवाले वह धरतीतल पर विहार करते हैं।
घत्ता-चर्यामार्ग में प्रवृत्त जब वह (आहार के लिए) घूमते हैं तभी राजा श्रेयांस ने हस्तिनापुर में स्वप्न देखा॥२॥
चन्दन, भाजन-भोजन, सुरभित चावल, भिंगारकों में उत्तम जलों को अपने सिरों पर लेकर, रास्ते में खड़े होकर स्वामी को उक्त चीजें देते हैं, वे अज्ञानी नहीं जानते । दूसरे प्रशस्त देवांग वस्त्र, कटिसूत्र, केयूर, मणिहार, मंजीर, कंगन, कुण्डल, (मानो सूर्यमण्डल हों) पाप से रहित देव के लिए लाते हैं, दूसरे लोग कुलीन कृशोदरी (मध्य में क्षीण), लावण्य से परिपूर्ण कन्याओं को भेंट में देते हैं, नर-रथ-तुरंग और गजों के समूह, पैने प्रहरण, उपवन, नगर, वाद्यों से युक्त चमर और आतपत्र (छत्र), चन्द्रमा और शंखों के समान सफेद ध्वज और प्रासाद दूसरे देते हैं, और दूसरे देते हैं, "कामदेवरूपी मृग के आखेटक, ज्ञानरूपी जल के प्रवाह, तरुण सूर्य के समान आभावाले, हे तपश्री के स्वामी, हे देवदेवेश, हे परम-परमेश, दिगम्बर वेष अपने शरीर के शोषण से क्या होगा, क्यों नहीं बताते। न हँसते हो न रमण करते हो।" यह कहकर चाटुकर्म से सज्जित
पलंग पर सोते हुए, अपने नेत्र मलते हुए, रात्रि के अन्तिम प्रहर में सोमप्रभ के अनुज श्रेयांस ने स्वप्न देखा-चन्द्र-सूर्य-महागज सरोवर-समुद्र-कल्पवृक्ष, बल से उत्कट सिंह, अपने बाहुओं से युद्ध को जीतनेवाला, शत्रु का छेदन करनेवाला, भार उठाने में समर्थ कन्धोंवाला,
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