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जोयं पात्र सिडामान नष्टावणाई विहरेश्परमेहि जयमेनुगयरिडि जीवंगडूस ये कंच परदेश रमणीयथामे गजरे सुगामेसु तंविण्यास लखि यष्णमं तिष्णाथरिन धबुद | रसालीण आमंतिगामीण लमाय कंपति अपनयति । यसोमहाराज एसोमहादेउ धक राजधमाई यच्चिरमाई मंडलप्रेमहिम लई कार्कीणवरुनई, पञ्चपडिवन्त्रि अवयरहे। सदसति इमलविसलाई विधिदाइफलदल लमराहिरामाई गाव कुसुमदामाई कुंकुम
और योग के छोड़कर सिद्धार्थ नामक उस वन से परमेष्ठी ऋषभनाथ विहार करते हैं। चार हाथ धरती पर गजदृष्टि से देखते हुए पैर रखते हैं, जीवों को नहीं कुचलते रमणीय नगरों और ग्रामों में उन्हें विनय और नय से भरे हुए नागरिक प्रणाम करते हैं। ग्रामीण अद्भुत रस में लीन होकर उन्हें देखते हैं, भय से काँप
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स्वामी आदिनाथ जोगधिमाइकरि ठहरमाहाने का दारनिमित्रेविह
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उठते हैं। दूसरे कहते हैं- "ये महाराज हैं, ये महादेव हैं। इन्होंने धन, स्वर्ण और धान्य दिया है, मण्डलों और महीतलों को बहुफलों से युक्त किया है। इनकी प्रवृत्ति सहसा उद्धार करती है।" यह सोचकर आर्द्र (ताजे) विविध फलदलों, भ्रमरों से अत्यधिक अभिराम नवकुसुम-मालाओं, कुंकुम,
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