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रसंकलकियांमुस्थामा विमलमसमचार्यसिवसममंदिरमसमशेणामवेसबासिहास सूरसायकरमालकयं इंटकतमहारोहणासायद वायसायबिसायसहालायन श्रलयतिलयचणहातलमयमदिरी कुसुमकुंदवणहवल्लहसुंदर जयतिलयंसणि यसगंधधर्म मुक्हारसुस्थाणिमिसदिवय अग्गिजालापुरंगरुयवालापुर सिरिणिकेतच जयसिरिणिवासपर ख्यणकलिसंघरिहबिसिहासी दविण्जदमविससईवसासय के पासिदायिगोखोखरसिहस्य वस्थिवाहसिहांचगिरिसिहयधरणिधारपिसदसणपुरेही दया डाडाझरिमार्मिध्य विजयणामधुरतुणुसुगधिणिपुरसुरयणायपुरंग्यणपुर मविवरसहिगामाणकोडीहिंसाहारिणा सहवणसुविसिहसहयारिणा घनाश्मण सरणिवसियखारवणकण्जणसुिप्पई अणुरा सिहपसार्य गाविणमिहदि मछात्रावलाजाळसाणहूयरापंपहपिट पहाणवठसमहिणासमभिसुलपुदारलार धरणझयंगठाविणधरोधरंगटालामुयणहामंडणुअरहतमाणिणिमुही
पत्ता-नृपश्री और खेचरों से युक्त धन-कण और जन से परिपूरित ये नगर ऋषभ के प्रसाद से विनमि को प्रदान किये गये॥१४॥
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संकर, लक्ष्मी, हयं, चामर, विमल, मसक्कय, शिवसम मन्दिर, वसमती सर्वसिद्धार्थ, सर शत्रंजय, केतमाल- इन्द्रकान्त नभानन्दन, अशोक, बीतशोक, विशोक, शुभालोक, अलकतिलक, नभतिलक, सगन्धर्व, मुक्तहार, अनिमिष दिव्य, अग्निचालापुर, गरुज्वालापुर, श्रीनिकेत, जयश्री निवासपुर, रत्नकुलिश, वरिष्ठ, विशिष्टाशय, द्रविणजय, सभद्र और भद्राशय, फेनशिखर, गोक्षीरवर शिखर, बैरि-अक्षोभ शिखर, गिरिशिखर, धरणीधारिणी, विशाल सुदर्शनपुर, दुर्गय, दुर्धर, हारिमाहेन्द्र, विजयनाम और फिर सुगन्धिनीपुर और भी रत्नपुर ये साठ नगर, साठ करोड़ गाँवों के साथ, सन्तुष्ट मनोज्ञ तथा सुविशिष्ट और शुभ करनेवाले (नागराज धरणेन्द्र ने)।
वह विद्याधरों का प्रिय स्वामी हो गया, वह अपने हितैषियों के साथ स्नेहबद्ध रहने लगा। सुजनों के उद्धारभार को धारण करने के लिए उद्यत वह धरणेन्द्र उन दोनों से पूछकर अपने घर चला गया॥१॥
भुवन के मण्डन अरहन्तदेव हैं, मानवियों का मुखमण्डन कामदेव है।
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